६५ रंडा उदंबर ब्राह्मण देहकृत्य करि श्रीयमुनाजी में स्नान करि. आइ. श्रीगुसांईजी कों दंडवत् करिपाठे श्रीअंग की कछ खवासी की सेवा कीनी। तव श्रीगुसांईजी कहे, जो-तृ मंगला पाऊँ 'गोप कूप में स्नान करि रमनरेती जेयो । तहां कछ होयगो। पाठे समय भयो तव श्रीनवनीतप्रियजी के मंगला के दरसन करि रमनरेती को चल्यो । सो गोप कूप में न्हाय पंचाक्षर मंत्र को जप करन लाग्यो । सो पांच माला पूरन भई और मुरली को सब्द श्रवन में परयो । सो आर्ति करि व्याकुल भयो । ताही समै श्री- ठाकुरजी, श्रीवलदेवजी पधारे । सो दरसन करत ही मूर्छ खाँय गिरयो । सो देहानुसंधान भूल्यो । तव श्रीठाकुरजी अपने गरें तें फूल की माला याके कंठ में डारि आप तो पधारे । सो दुपहेर ढरि गयो। तव वह डोकरी अपने श्रीठाकुरजी सों पहोंचि महाप्रसाद ढांकि के श्रीगुसांईजी पास आय के रेंडा को सगरे ढूंढयो । परि कहूं पायो नहीं। तब डोकरी ने श्रीगुसांईजी सों पूछी, जो-महराज ! में आज रेंडा को सगरे ढूंढयो परि कहूं पायो नाहीं । सो अव तांई महाप्रसाद लियो नाहीं है । तब श्रीगुसांईजी आप कहे, जो-रेंडा तो रमनरेती में है। तहां ते लिवाय ल्याऊ । तब वह डोकरी तत्काल दंडवत् करि के रमनरेती गई । सो जाय के देखें तो रेडा को कछु सरीर की सुधि नाहीं। और सुंदर कुंद के पुष्प की माला याके गरे में देखी। तब डोकरी ने विचारयो. जो- आज रेंडा पैं भगवद् कृपा भई है । सो यह माला श्रीठाकुरजी प्रसादी दिये हैं । तब डोकरी ने आधी माला तारि के अपने आंचर में बांधी। पारंडा को जगायो । सो तीन घरी पाठे
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