रंडा उदंबर ब्राह्मग सो केतेक दिन पाछे श्रीगुसांईजी आपु श्रीगोकुल पधारिखे की तैयारी करी। तब रामदास ने विनती करी. जो- महाराज! कृपा करि के फेरि कव पधारोगे ? तब श्रीगुसांईजी आज्ञा किये. जो-हम बेगि आवेंगे। और तुम सेवा श्रीनाथजी की भली भांति सों करियो । सो रामदास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय हे, ताते इन की वार्ता कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥२५॥ अव श्रीगुमाईजी को सेवक रंडा उदंबर ब्राह्मन, गुजरात में कपडयनज गाम है तहां रहतो, तिनकी वार्ता की भाव कहत हैं- भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं । लीला में इन को नाम 'संगिनी' है। 'नागवेलिका ' ते प्रगटी है, । तातें उनके भावरूप हैं। वार्ता प्रसंग-१ सो वह अवधूत दसा में रहता । व्याह जन्मही ते नाहीं कियो । सो एक समै श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे हते तव वाको नाम सुनायो हतो । तव रेडा ने श्रीगुसांईजी मों विनती कीनी, जो- महाराज ! मेरे तो कुछ संग्रह है नाहीं । मैं तो अवधूत दसा में रहत हूं। सो अव मोकों कहा आज्ञा है ? सो आप कृपा करि के कहिये। तब श्रीगुसांईजी आज्ञा किये. जो- तु अपने हाथ सों रसोई करि भोग धरि महाप्रसाद लीजियो। और रसोइ करिव को अपने मन में सुख मानियो। दुःख मति मानियो । याही त तेरो भलो होइगो। तब रेंडा ने विनती करी, जो - महाराज ! भोग धरिखे का मेवा पधराय दीजिये। तव श्रीगुसांईजी रेडा को ब्रमसंबंध करवाय के पाछे एक श्रीनवनीतप्रियजी की कुव्ही लाल
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