48 दोसौ बावन वणवन की वार्ता कों मैं उत्तर देहुँ । जो-श्रीगुसांईजी तो आप सेवा में हैं। तब उन पंडितन परमानंद सोनी सों कह्यो, जो-तुम को तो कहिवे कौ काम नाहीं है । जो-तुम वेद सास्त्रन को वात में कहा जानोगे ? तब परमानंद सोनी ने कह्यो, जो- भले ! तुम बैठो। श्रीगुसांईजी आप सेवा सों पहोंचि के आवेंगे तव तुम कों उत्तर देइंगे । ता पाछे उन पंडित ब्राह्मनन सों परमानंद सोनी ने एक श्लोक 'श्रीभागवत' 'रास पंचाध्याई' को पूछ्यो। और कह्यो, जो-याको कहा अर्थ है ? तब उन पंडित ब्राह्मन ने कछू को कछ उत्तर दीनो। तव परमानंद सोनी ने वाको अर्थ करयो । जो-ऐसे हैं । तव वे पंडित ब्राह्मन आपुस में मुख देखन लागे । उन आपुस में कह्यो, जो-भाई! अव कछु पूछनो होई तो इन ही को पूछि के चलो। जिन के सेवक सूद्र ऐसे हैं उन के गुरु की तो कहा कहनो? जो तुम उन सों बाद करि कै जीति नाहीं सकोगे। ऐसें आपुस में क्तराय के जो-कछ पूछनो हतो सो परमानंद सोनी सों पूछ्यो। ताकी उत्तर वेद पुरान सास्त्र की रीति सों परमानंद सोनी दे कै उन कों निरुत्तर किये । तव वे पंडित हाथ जोरि कै कहे, जो तुम धन्य हो । जो-जाके सोनी सेवक सूद्र को सरस्वती ऐसी स्फुर्त है तिन के गुरु की तो कहा कहनो ? तब उन पंडित ब्राह्मन अपने मन को समाधान करि कै उठि चले। ता पाछे घरी चारि में श्रीगुसांईजी आप बाहिर पधारे। सो गादी तकियान के ऊपर बिराजे । तव एक वैष्णव ने सब समाचार कहे, जो-महाराजाधिराज! कासी-प्रयाग के पंडित वाद करन को आए हते । सो उन को परमानंद सोनी ने
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