४८ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता तव वह वैष्णव ने अपनी स्त्री पुत्र सों पूछ्यो, और कह्यो, जो-अब कैसी करिये ? वैष्णव हठ परयो है । सो ये श्रीगुसांईजी कौ सेवक है। तातें ये कयो है सो सर्वथा देहिगो। परि अपने कछ चहिए नाहीं। और मांगनो कछु वैष्णव को धर्म नाहीं। तव स्त्री ने कह्यो, जो - तुम अपने लिये कछ मांगों मति। या गाम कौ राजा वृद्ध भयो है। और या राजा के कोई पुत्र नाहीं है। और आपुन या राजा के राज्य में सुख पायो है । तातें या राजा के मरें फिर कहा जानिये कैसो राजा वैठे । तातें या राजा के एक पुत्र मांगो। तव वह ब्राह्मन आइ कै कह्यो, जो-हम को तो कछु नाहीं चाहिए। परंतु या गाम के राजा के एक बेटा होइ तो आछो है। तव वह वैष्णव प्रसन्न होंइ कै कह्यो, जो- एक कहा चार बेटा होइंगे । ऐसें कहि के वह विरक्त वैष्णव तो विदा होइ के गयो । पाठें वह ब्राह्मन महाप्रसाद लै के राजा कों जाँइ के आसीर्वाद कियो । पाछे राजा सों कह्यो, जो-राजा ! बधाई है। तिहारे चारि बेटा होइंगे। तब राजा हँस्यो। और कह्यो, जो-मैं हू कछूक दिन में मरूंगो । मेरे दांत ह टूट चूके, तू कहे के चारि बेटा होइंगे! तब याने कह्यो, जो-राजा! विस्वास राखिये । मेरे घर वैष्णव कहि गयो है । तातें तेरे सर्वथा पुत्र चारि होइंगे । तब इन कह्यो, जो-आछो । होइंगे तो हम नाहीं कब कहत हैं ? तब ब्राह्मन आसीर्वाद दे कै आयो । पाठे चारि रानीन के गर्भ रह्यो । तब राजा ने कह्यो, जो-वह ब्राह्मन वैष्णव के बचन सत्य होत दीसत है। पाळे समय भए राजा के चारि पुत्र भए । सो राजा को बड़ो आनंद भयो ।
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