पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/५

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आमुख 6 श्रीमत्प्रभुचरण की असीम दया से तीन जन्म की भावनावाली '२५२ वैष्णवों की वार्ता' का यह द्वितीय खण्ड सम्प्रति प्रकाशित हो रहा है। जिस में ८५ से लेकर १६८ तक के महानुभाव वैष्णवों की वार्ताओं का संकलन है । स्वप्न में भी यह ध्यान न था कि प्रस्तुत खण्ड इतनी शीघ्रता से प्रकाशित हो सकेगा । परन्तु सम्प्रदाय में वार्ताओं प्रति वर्तमान अद्वितीय अनुराग अखण्ड रूप में चला आ रहा है उसी का ही यह फल है, कि- विपुल धनराशि द्वारा संपन्न होनेवाला यह महत्कार्य इतना शीघ्र संपन्न हो सका । अस्तु. प्रथम खण्ड के 'आमुख में यह स्पष्ट किया गया है, कि वार्ताओं का सर्वांगीण अध्ययन अन्तिम खण्ड अर्थात् तृतीय खण्ड में किया जायगा । अतः प्रस्तुत खण्ड में उस विषय की चर्चा सम्प्रति आवश्यक नहीं है । हम परम कारुणिक श्रीमद् विट्ठलेश्वर प्रभुचरण से यह प्रार्थना करते हैं कि-जिस प्रकार इस द्वितीय खण्ड का कार्य सरल और शीघ्र प्रकार से सम्पन्न हो गया उसी प्रकार इस का अवशेष कार्यरूप तृतीय खण्ड भी उतना ही शीघ्र एवं सुंदर रूप से प्रकाशित हो जाय, ऐसी अनुग्रह-दृष्टि करें। तदुपरांत हम भगवदीय वैष्णवों से भी प्रार्थना करते हैं, कि- वे इस अद्वितीय ग्रन्थ को विशेष रूप में खरीद कर इस के अवशेष कार्य की पूर्ति में सहायक हों। प्रस्तुत द्वितीय खण्ड के मुद्रण में प. भ. ललितावेन चुनीलाल पटेल, अह- मदाबाद ने रु. २००) की सहायता दी हैं, एतदर्थ उनका सहयोग स्मरणीय है। श्रीसूरजयन्ती (वै. शु. ५) -प्रकाशक सं. २००९, बड़ौदा .. SP3300