३४ दोसी बावन वैष्णवन की वार्ता होई सो अपने घर श्रीठाकुरजी को प्रथम आरोगावे। पार्छ उहां महाप्रसाद लेई । यह मारग की रीति है । सो यह पुष्टिमार्ग में पतिव्रता-धर्म मुख्य है । और श्रीगुसांईजी 'श्रीसर्वोत्तम स्तोत्र' में श्रीआचार्यजी को नाम कहे हैं, जो - "पतिव्रता पतिः".सो पतिव्रता, जो - अनन्य भक्त, तिनके आप पति हैं। यह कहि यह जतायो, जो - पुष्टिमार्ग में पतिव्रता-धर्म की नॉई जो-कोऊ वैष्णव ठाकुर की सेवा करत है ताको स्वामिनीवत् सौभाग्य की प्राप्ति होत है । और ये लीला में 'रति' 'गति' दोऊ जसोदाजी की सखी हैं। सो नंदा- लय में श्रीठाकुरजी की सेवा में सदा तत्पर रहति हैं। नई नई सामग्री सिद्ध करति हैं । सो श्रीजसोदाजी दोऊन को थार को महाप्रसाद नित्य देति हैं. सोई लेति है । और कछू लेति नाहीं । ऐसी दोऊ अनन्य हैं । सो वा दिना मंडली में रस हतो। सो सव आम तो वा सेठ के घर ले गए हते । और यह वैष्णव आंवा लैन कों वजार में गयो । सो वजार में कहूं आंवा न मिले । तव यह वैष्णव को अत्यंत ताप भयो । तव ताही समे एक माली बजारमें आंबान कौ टोकरा लै के आयो। भावप्रकाश-यह कहि यह जताए, जो - ताप-भाव सौ सर्व मनोरथ तत्काल सिद्ध होत हैं। तब इन वैष्णव ने पूछी, जो-हम को दोइ पैसा के आंवा देइगो ? तब उन माली ने कही, जो - सगरो टोकरा लेउ तो देउं ! तव इन वैष्णवने कही, जो - सबन को कहा लेउगे? तब मालीने कही, जो-एक रुपैया लेउंगो। तब वैष्णवने कही, जो- रुपैया कहां तें ल्याऊं ? ऐसें कहि के पाछे कही, जो- दोइ चारि दिना तांई मांगियो मति, पाऊँ देईंगे। ऐसें कहि के वह वैष्णव श्रीयमुनाजी के किनारे आयो । तहां एक-एक आम धोय धोय के श्रीठाकुरजी को मानसी में भोग धरत गयो । सो श्रीठाकुरजी ने वाही ठौर सब आम आरोगे।
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