पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/४२४

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एक चूहडा,-श्रीगोवर्द्धन को ४२३ 1 वह लरिका अपने घर आयो । परि काहू सों कह्यो नाहीं। पाछे श्रीगुसांईजी की नित्य ध्यान करे और अष्टाक्षर मंत्र को जप करें। या प्रकार रहे । और कह कार्य करे नाहीं। ऐसे करत कछक दिन में माता-पिता मरे । तब यह खेती कग्न लाग्यो । सो श्रीगुसांईजो की कृपाते श्रीनाथजी वाकों दग्सन देन लागे । वा सो बातें करन लागे। या प्रसंग- सो उह चूहडा श्रीगोवर्द्धन में रहतो। सो वह श्रीगुमां- ईजी कौ सेवक हुतो । सो वा चूहडा की ऐसी लगन हती । मो उह चूहडा श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन विना रहि सकत नाहीं हतो । सो वा चूहडा को श्रीगोवर्द्धननाथजी वाहिर पधारि के दरसन देते । सो एक दिन श्रीगोवर्द्धननाथजी वाके पास ठाढ़े श्रीगुसांईजी ने देखे । सो वा चूहडा सों श्रीगोवर्द्धननाथजी वार्ता करत देखे । ता पाछे चूहडा सों श्रीगुसांईजी ने पूछी, जो - श्रीगोवर्द्धननाथजी तोसों कहां वात करत हते ? तव चूहडा ने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो- महाराज की कृपा तें नित्य मोकों श्रीगोवर्द्धननाथजी दरसन देत हैं । और जो - कछु वन में खेलिवे की, गायन की, ग्वालन की वार्ता भई होंई सो वार्ता करत हैं। पाछे वा चूहडा ने श्रीगुसांईजी सों विनती करी. जो- महाराज ! आप की कृपा तें मोकों दरसन दिये विना श्रीगो- बर्द्धननाथजी आप रहि सकत नाहीं। और काहू दिन भगवद् ईच्छा तें दरसन न होंई तो ता दिन मैं अन्न-जल हू नाहीं लेन हों । ऐसें भूखो रहत हों । ऐसें मेरे नित्य नेम है। ता पाठे दूसरे दिन श्रीगोवर्द्धननाथजी आपु वाहिर पधारि के मोकों दरसन देत हैं। तव हो अन्न-जल लेत हों। तव श्रीगुसांईजी आपु श्रीमुख तें कह. जो- राजभोग के समय माला वोले तव मंदिर के किवाड़-दरवाजे पर वैठियो।