एक साहूकार, मधुरा का सेवा में विनियोग' कराइयो । ता पार्छ वाकों अपने कारज में लीजियो । तातेअन्य संबंध की निवृति होगी। तब सरन दृढ़ होइगो। सरन दृढ़ भएँ चिनु श्रीठाकुरजी की कृपा होत नाहीं । तातें घर में गहि के मारग की रीति प्रमान सेवा.कग्यिो । और मथुराजी में अमके स्त्री-पुरुष वैष्णव निष्किंचन रहत है ताको मंग करियो। सो वे तोकों सेवा को प्रकार समझायेंगे। सो ता प्रकार त सेवा करियो । तातें तेरे ऊपर वेगि कृपा होडगी। एस कहि श्रीगुसांईजी आप भोजन को पंधारे । तब आप या साहूकार को आज्ञा किये, जो.- आज त यहांड महाप्रसाट लीजियो। पाउं श्रीगुसाईनी आप भोजन करि वीरी ले बाहिर पधारे । तब या माहूकार को आप जठन की पानरि धरे । सो यह साहुकार महाप्रसाद लियो। पाछे वह साहकार श्रीगुसांईजी सों आज्ञा मांगि मथुराजी आयो । ता पाछे वाने अपनी स्त्री को एक वैष्णव के सग श्रीगोकुल पठाई । और स्त्री सों कह्यो, जो-तू वेगि श्रीगुसांईजी की सेवक होऊ । तंब दोऊ मिलि के सेवा करें। सो स्त्री हू श्रीगोकुल जॉई, श्रीगुसांईजी की सेवकिनी होई आई । तब दोऊ मिलि के सेवा करन लागे । पाछे वह निकिचन स्त्री-पुरुष को संग करन लाग्यो । सो याकौं भगवद्भाव बढयों । तब यह साहूकार ऋतु अनुसार मनोरथ करन लाग्यो । ता पाछे सब वैग्णवन को बुलाइ मंडली करे । या प्रकार प्रीति पूर्वक सेवा करतो । सो श्रीठाकुरजी थोरैई दिन में वाकों मान- भावता जनावन लागे। वार्ता प्रमंग-१ सो एक दिन साहकार वैष्णव ने आम के दिनन में समस्त गाम के वेष्णवन की मंडली कीनी। सो आम के रस की मंडली करी। सो मथुराजी में श्रीगुसांईजी के सेवक निष्किंचन स्त्री-पुरुप दोइ वैष्णव हते । सो उन वैष्णवन के यह नेम हुतो. जो- अपने श्रीठाकुरजी आरोगे सोई लेनो। और वैष्णव-मंडली में न्योती आवे तव जो सामग्री मंडली में होंइ सो अपने श्री- ठाकुरजी कों आरोगावते । तब मंडली में जाते । भावप्रकाश-काहेते. जो - यह पतिव्रता को धर्म है, जो- म्यामी आगेगे मोई लेनो,। और समाज राखिवे को वैष्णव-मंडली में जोड। परि उहां जो मामग्री .
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