४१८ दोगी बान की पानां रूपा पोरिया सों पूछे. जो - तृ या विरियां क्यों आयो है ? तव रूपा ने श्रीगुसांईजी सों विनती कर्ग. जो - महागन मैं तो याके लिये आयो हूं. जो - श्रीगोवर्द्धननाथी आफु भृग्य हैं । तब श्रीगुसांईजी तुरत ही उठि के श्रीगोवर्द्धननाथजी के मंदिर में जॉई के श्रीगोवर्द्वननाथजी को फेरि गजभोग समायों। ता पाछे भोग सराय के मव मेवा ने पहांचि के श्रीगुमाईजी आप अपनी बैठक में पधारे । सो पोटे। तब स्पा पोग्यिा अपनी द्वारपाल की मेवा किये। मोम्पा पोग्यिा मों श्रोगोष- द्धननाथजी ऐसें मानुभाव हने । मो जो कछ, चहिए मोम्पा पोरिया सों कहते । और रूपा पोरिया मां उष्णकाल में पंखा करावते । ऐसी कृपा श्रीनाथजी रूपा पोरिया के ऊपर करते। सो ऐसी रूपा पोरिया की कितनिक वानी हैं । मो में करत पाछे केतेक दिन म वा रूपा पोरिया की देह छटी । तर वैष्णव मिलि के अमि-संस्कार कियो । ता पाछे उह बात श्रीगुमां- ईजी सुनि कै श्रीमुख तें कहे. जो - भगवद् ईन्छा होइ मो होइ । जो - श्रीगोवर्द्धननाथजी की ईच्छा प्रवल है । सो वे रूपा पोरिया श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय हतो। पा प्रमग-२ पाछे एक समै श्रीगुसांईजी श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन कों पधारे हते । सो श्रीनाथजीद्वार पधारे । मो गोविंद कुंड पे स्नान करि कै श्रीगुसांईजी श्रीगोवर्द्धननाथजी के मंदिर में पधा- रत हते । सो ताही समै एक स्वान श्रीगुसांईजी कों देखि कै सन्मुख आयो । सो आय के चरन-परस की ईच्छा करत हुतो। तव सव वैष्णव लाठी ले कै मारन लागे। सो ऐसो मारयो सो
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