४०२ दोसी बावन वैष्णन की वार्ता और दोऊ श्रीहस्त मां वेनुनाद करत हैं। मो मब ब्रज की सुधा को पान करावत हैं । कवहक बनु की फंक पर श्रीगोव- र्द्धन को राखत हैं। और वाम भाग के नीचे के श्रीहस्त में मंग्य है । सो आधिदविक जलरूप है । सो इह लीला गोवर्द्धनधर श्रीगोकुलनाथजी मे प्रगट हैं। अव श्रीगोकुलचंद्रमाजी को स्वरूप मानात मनमथ-मनमय है । सो जब 'पंचाध्याई में आप अंतर्धान भए । ता पाऊँ श्री- गोपिकान ने रुदन कियो। तहां प्रगट भये। मो ललितत्रिभंगी कौ स्वरूप हैं । ता पछि राम भयो है। तब आप दोऊ हस्त करि मुरली वजाई है। और सब व्रजभक्तन को रसदान करत हैं । सो तहां छह धर्म एक धर्मी । सो ताके ऊपर अंगुली धरी हैं। सो तो यह ब्रजभक्तन को समाधान करत हैं. जो-तुम्हारी भक्ति के मैं बस हूं। मैं तुम्हारो रनिया सदा हूं। सो ऐसें श्रीगोकुलचंद्रमाजी में रासादि लीला हैं । सो ताको प्रादुर्भाव वोहोत है। अव श्रीमदनमोहनजी की भाव कहत हैं, जो - निकुंजा- दिक के भीतर है, सो नाना प्रकार की लीला करत है। तहां कोटि-कोटि कामदेव लज्जा पावत हैं । तहां भांति-भांति की लीला करत हैं । अरु 'रासपंचाध्याई' में मुरली वजाई के सब व्रजभक्तन कों बुलाये । ता समै उद्दीपन भावरूप आप भए । सो स्वरूप श्रीमदनमोहनजी को है। या प्रकार सातों स्वरूपन की भावना है। तातें उनके दरसन करे ता समे या प्रकार भावना करनी, ऐसें श्रीगुसांईजी आप आज्ञा किये । और श्रीगोवर्द्धननाथजी निकुंज-नायक हैं। सो निकुंज के ।
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