पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३९९

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टोमी बावन वणवन की वार्ता ईजी के पास आय के दंडवत् करी। नव श्रीगुसांईजी ने पृछी, जो- वेष्णव ! श्रीनवनीतप्रियजी के दरमन किये ? तब वा विरक्त वैष्ण- वने श्रीगुसांईजी मां विनती कीनी, जो - महाराज! आप की कृपा तें सातों स्वरूप के दरसन किये । मा नाकी बड़ाई कहां ताई जीव करि सके ? परि महाराज ! इन के स्वरूप-भाव जानिए नो आछी । तब श्रीगुसांईजी ने वा वैष्णव मों को श्रीयमादाजी के इहां प्रभुन ने बाललीला करी है । मो स्वरूप श्रीनवनीतप्रियजी की है। और श्रीजमोदाजो के इहां बड़े भये तब गौचारन लीला किये हैं सा स्वरूप श्रीमथुरानाथजी की है । मो जा समे श्री- मथुरानाथजी श्रीगोपीजनन के घर माग्वन की चोरी को जात हैं तव सखान को ले के श्रीस्वामिनीजी के घर जात हैं। तहां दृध, दहीं माखन की चोरी करत हैं। तहां एकांत में आय के श्रीस्वामिनीजी ने कह्यो, जो - आज मैं पकरि कै श्रीनंदराय- जी श्रीयसोदाजी की आगे ले जाउंगी । तब श्रीमथुरानाथजी की दोई भुजा श्रीस्वामिनीजी ने पकरी । तब श्रीमथुरानाथजी आप दोई भुजा और प्रगट करिके श्रीस्वामिनीजी सों विनती कीनी, जो-मैं तो तुम्हारे बस हों। तुम को पास ही राखत हों। सो मेरे नीचे श्रीहस्त में संख है। सो तुम्हारी ग्रीवा के आकार है। तातें में धारन किये हों। दूसरे श्रीहस्त मे पन हे । सो तो कमलवत् है । और तुम्हारो मुख है सो हू कमल है। तातें मैं तिनके आकार में धारन किये हों। और ऊपर वाम हस्त में गदा है। सो तुम्हारे कुच कै आकार रूप है तातें राखे हों। और एक श्रीहस्त में चक्र है । सो तुम्हारे आभूषन जो कटि किंकनी हैं