३९२ होमी पारन वणन की यार्ता भगवदीय वैष्णव ने मन में विचारी, जो - ये तो पूरे नाहमी हैं । लौकिक में तो इनकी परीक्षा लीनी । परंतु अब अली- किक में देखें, ये कैमें है ? पाठे उत्यापन की समय भयो। तब यह ताहसी वैष्णव स्नान करि के उत्थापन-भोग, संध्या-भोग सेन-भोग धरि के मेन-आर्ति करि के श्रीठाकुरजी को पांढाय के पाछे भगवदवार्ता करते । सो भगवदीय वैष्णव भगवढ्वार्ता करन लागे । सो करत करत सवेरो होइ गयो । घरी दोइ चारि दिन चढयो । ऐसें नित्य करें। तव इन भगवदीय ने मन में विचारी, जो - ये तो संपूरन ताहसी हैं। तातें अब श्रीठाकुरजी कों अवेर होइ, जो - नित्य या समय राजभोग आर्ति होह । सो अव उठो स्नान करो । तव ताहसी उठि के स्नान करके श्रीठाकुरजी को जगाय के मंगल-भोग धरि के रमोई की सामग्री वालभोग की सब सिद्ध करी । पाठे सिंगार कर के राजभोग समर्पि के आर्ति करि के श्रीठाकुरजी को अनोसर करि के पाछे उन वैष्णवन को स्नान करवाय के महाप्रसाद लिवायो । पाठें वह भगवदीय ने चलिवे की तैयारी करी। तव उन ताहसी ने कही, जो - मेरे घर दोइ चारि दिना कृपा करि कै रहो। तब उन कही, जो - अब तो चले तो आछी है। पाठें उन सों विदा भए । अति प्रसन्नता सों अपने घर आए । सो उन वैष्णवन को श्रीगुसांईजी पे, श्रीठाकुरजी पे, वैष्णवन पै, ऐसो भाव हतो। भावप्रकाश-या वार्ता में बड़ो संदेह है, जो - तादृसी, भगवदीय वैष्णवन की परीक्षा सर्वथा नाहीं करनी, जो - करें तो अपराध होई । ऐसो श्रीआचार्यजी आप कुंभनदास प्रभृति वैष्णवन को आज्ञा किये हैं। और इन तासी - भगवदीय दोऊन आपुस में परीक्षा किये ? ताको कारन कहा १ तहां कहत हैं, जो - इन
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