३८८ टोमा बापन पिन की वार्ता पछि व्याह के दिन आय पहोंचे। तब मबार बेगि उठि के मेवा सिंगार राजभोग सों पहोत्रि के पा लीकिक कार्य किया। पाछे सब वैष्णव को बुलाए । मो उन ताहमी वाणव के मन में ऐसी हती, जो - इन भगवदीय वैष्णव की परीक्षा लेनी । नातं जब कन्यादान की समय होइ नव चलेंगे। प्रेम विचारिक उहां तें निकसे । सो या वष्णव भगवढीय के गाम के बाहिर आय वैठे । और पांच-सात वष्णव मंग आप हते। नाम त एक वैष्णव को पठायो । और कही, जो - जा सम कन्यादान कौ सम होइ ता सम उन को ग्यवरि करियो । मो वह वैष्णव उहां जाय वैठयो । पाठे जब कन्यादान को मम भयो तब उन कही, जो - वह ताहसी वैष्णव आये हैं। तब यह मुनि के वह भगवदीय वैष्णव उठे । सो पांच-मात वैष्णव संग ले के उन ताहसी के साम्हे जाँड़ के श्रीकृष्ण-स्मरन करि के अति हरख सों मिलि के अपने घर पधराय ल्याये । पालें उन को स्नान करवाय के सवन को महाप्रसाद लिवायो। विछौना करि के सवन को सुवाए । पाछे आप विवाह कार्य म गए । तब ब्राह्मन ने कही, जो-लगन घरी तो निकसि गई। तब भग- वदीय वैष्णव न कही. जो - और लगन घरी देखो। तर वामन ने और घरी देखी। सो घरी दोइ पाछे मुहूर्त हतो। सो वा समै लगन कन्यादान करि के पाछे जव पाछिली रात्रि घरी छह रही तव वे दोऊ स्त्री-पुरुष सेवा में न्हाए। सो स्त्री ने तो सामग्री सिद्ध करी । उन भगवदीय वैष्णव ने श्रीठाकुरजी कों सिंगार करिकै राजभोग समर्यो । समय भए भोग सराय राजभोग-आर्ति करि कै इन ताहसी वैष्णव को श्रीठाकुरजी
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