एक भगवदीय, एक तासी, गुजरात के ३८७ सो वे स्त्री-पुरुष श्रीगुसांईजी के ऐसें भगवदीय कृपापात्र सेवक हते । तातें इन की वार्ता कहां ताई कहिए । वार्ता॥ १५९ ।। अव श्रीगुमाईजी के सेवक एक भगवदीय, एक नाहसी, गुजरात के, तिनकी वार्ताको भाव कहत हैं- भावप्रकाश-ये दोऊ राजस भक्त हैं । लीला में 'कमलाक्षी' और 'हिर- णाक्षी' इन के नाम हैं। मो भगवदीय तो 'कमलाक्षी को प्रागट्य जाननो और 'हिरणाक्षी' ताहसी है । ये 'मधुरा' तें प्रगटी हैं. तातें उन के भावरूप हैं। घार्ता प्रसग-१ सो श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे तब ये दोऊ भगवदीय, तादृसी सेवक भए हैं। सो श्रीगुसांईजी की कृपा तें दोऊन में भगवद्धर्म दृढ़ हतो। सो वे भगवदीय वैष्णव 'राजनगर में रहते। और वे ताहसी वैष्णव धोलका में रहते । परि उन दोऊन को मिलाप न भयो हतो। परंतु भगवदीय के मन में हती, जो - उन तासी वैष्णव सों मिलनो। सो एक समै इन भगवदीय वैष्णव की बेटी को विवाह आयो । तव इन भगवदीय वैष्णव ने 'कंकोत्री' वैष्णवन कों लिखि पठाई । सो उन ताहसी वैष्णव कों ह लिखो। जो अपने बेटी को विवाह है । सो तुम कृपा करि कै पधारोगे। सो ए दोऊ स्त्री-पुरुष सेवा सों पोहोंचि कै राजभोग-आर्ति करि कै एक दोय वैष्णवन कों नित्य महाप्रसाद लिवावते । पाठे आप महाप्रसाद लेते । फेरि उत्थापन तें सेन पर्यंत सेवा करिकै पाछे श्रीठाकुरजी कों सेन करावते । पाठें और गाम के वैष्णव आवते। सो भगवद्वार्ता कीतन नित्य करते। उनके घर मंडली होती।
पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३८८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।