चंदावनदास, छवीलदास, आगरे के ३८३ विनती कीनी, जो - राज ! कृपा करि कै श्रीठाकुरजी पधराय देउ । तव श्रीगुसांईजी ने कृपा करि कै सेवा पधराय दीनी। और आज्ञा कीनी, जो- हृषिकेस को सत्संग करियो । तव इन कही, जो - राज ! हषिकेस हमारे काका लगत हैं। तव श्री- गुसांईजी ने कही, जो तव तो तुम्हारो घर एक है सो तुमकों सेवा की विधि सव वताय देइंगे । पाठे वृंदावनदास छवीलदास दोऊ श्रीगुसांईजी सों विदा होंइ कै आगरा आए । सो हपि- केस तें सव समाचार कहे, जो - श्रीगुसांईजी आज्ञा किये हैं तातें सेवा की रीति भांति सब सिखावो । तव हृषिकेस ने सव विधि पूर्वक खासा सेवकी सब सेवा को प्रकार वताय दिए । पाछे दोऊ जने भली भांति सों सेवा करन लागे । सो ओसरे सों सेवा करते । एक दिन सिंगार वृंदावनदास करे, एक दिन छवीलदास करे । तव वृंदावनदास सामग्री करे। दूसरे दिन सिंगार वे करे तव सामग्री वे करें। ऐसें एक तें एक चढती सामग्री-सिंगार होडा होडी सो हुलास तें करते । पहर दिन चढ़े राजभोग आर्ति करि कै गाँई को महाप्रसाद दे कै वैष्णवन कों भाव सहित महाप्रसाद लिवावते । वैष्णवन मैं बड़ी प्रीति राखते । पाछै महाप्रसाद ले उद्यम-व्योपार करिखे जाते. सो उ- स्थापन के समै ताई जो प्राप्त होई सो ले के घर आवते । पाठे न्हाय कै सेन पर्यंत सेवा सों पहोंचि पाऊँ भगवद्वार्ता मंडली में जाते । सो उहां वार्ता सुनि के वड़े प्रसन्न होते । गदगद कंठ रोमांच होइ आवते । पाठें दोऊ जने घर आई कै घोखते । ऐसें वडो प्रेम उत्पन्न दोउन को भयो । सो वृंदावनदास की अनेक वार्ता है।
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