३७४ टोमी बावन वणरन की वार्ता सब सिखाय देइगो। पाछे श्रीगुसांईजी माँ विदा होंड के वे दोऊ अपने घर आए । सो वा बनिया-वैष्णव ने श्रीकृष्णस्मरन करि के अति प्रसन्न भए । ता पाछे वा बनिया वष्णवने वाकों मेवा की रीति सब सिखाय दीनी । ता पाळं वह स्त्री-पुरुष वामन वे- ष्णव श्रीठाकुरजी की तथा वैष्णवन की मेवा आठी भांति करन लाग्यो। जो कोई वैष्णव आवे तिन को आदर सन्मान करि के महाप्रसाद लिवावें । रात्रि को भगवद्वार्ता करते। मो वा व- निया वैष्णव के संग तें वे दोऊ ब्राह्मन स्त्री-पुरुष भले वैष्णव भए। -या वार्ता को अभिप्राय यह है, जो - घर आग बणाव की ममाधान जा भांति पनि आये ता मांति अवश्य कन्नो। और वैष्णव की म्वरूप जताए, जो - वैष्णव सर्वोपरि है । तात निशंक म्हन हैं। देवी-देवता मय उन ने भाचप्रकाम- डरपत है। सो व बनिया वैष्णव तथा ब्राह्मन वैष्णव श्रीगुसांईजी के ऐसें कृपापात्र भगवदीय हते । ताते इन की वार्ता को पार नाहीं। सो कहां ताई कहिए। वार्ता ॥१५५॥ 6 अब श्रीगुसांईजी के सेवक एक चीनकार, श्रीनाथजीहार में रहतो, तिनकी यार्ता की भाव कहत है भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं। लीला में उनको नाम 'वीणा' है। ये सुंदर गावति हैं। इनको स्वर बीन जैसो है । तातें श्रीठाकुरजी को ये अत्यंत प्रिय हैं । ये 'सुगंधीनी' ते प्रगटी हैं। तातें उनके भावरूप हैं। ये गोपालपुर में एक सनाढय ब्राह्मन के जन्म्यो। सो बालपन में ये श्रीगु- सांईजी कौ सेवक भयो, नाम पायो । पाछे ये वरम दस को भयो तब उनके माता पिता मरे । तब ये अपने नाना के यहां मथुरा जॉई रह्यो । सो वह बीनकार हुतो । सो बीन बोहोत आछी बजावतो । सो वानें इनकों वीन सीखायो ।, सो कछूक दिन में यह बीन बोहोत सुंदर बजावन लाग्यो । पाछे यह बरस पीस को भयो । तव याको ब्याह भयो । तव वह वह को ले अपने घर गोपालपुर में आय
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