एक बनिया, एक ब्राह्मन, जानें देवी के किवाड़ उतारि लिये ३७३ जो - हम देवी तें कहि आवेंगे । पाठे वह वैष्णव जॉय कै देवी सों कही, जो - हमारे तो लकरी वोहोत है । अव वा ब्राह्मन को नाम मति लीजो । तव वा देवी ने कही, जो - अव तो तुम मेरो किवार न लेउगे ? तव वैष्णव ने कही, जो- अब न लेइंगे। और वह वैष्णव होइगो । तव देवी ने कही,जो-अव नहीं वोलंगी। पाछे वा वैष्णव ने आइ कै वा ब्राह्मन तें कही, जो - देवी ने कही, जो - अव नहीं वोलंगी। तातें अब तुम श्रीगोकुल जाँइ कै श्रीगुसांईजी के पास नाम-समर्पन करवाय कै ब्रजयात्रा करिकै श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन करि के पा श्री- गुसांईजी सों विनती करि कै पाछे सेवा पधराय के आज्ञा मांगि के यहां आइयो। तव दोऊ स्त्री-पुरुष ब्राह्मन श्रीगोकुल आए। श्रीगुसांईजी के दरसन किए । तव श्रीगुसांईजी ने कही, जो- तुम तो देवी के पूजारी हो। तातें सवेरे व्रत करियो । परसों श्रीयमुनाजी में न्हाय कै अपरस में चले अइयो। पाठे दोऊजनेंन व्रत कियो। पाठें श्रीयमुनाजी में न्हाय कै अपरस में दोऊ जनें आय ठाढ़े भए । तव श्रीगुसांईजी ने कृपा करि के उन दोऊन कों समर्पन करवायो । पाठे वे दोऊ आज्ञा मांगि के ब्रजयात्रा, श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन किये। फेरि श्रीगुसांईजी के दरसन किये । पाछे श्रीगुसांईजी सों विनती करी. जो- महा- राज ! अव कहा आज्ञा है ? तब श्रीगुसांईजी ने कही. श्री- ठाकुरजी की सेवा करो । पाछे श्रीगुसांईजी उन को वस्त्र-सेवा पधराय दीनी । पाछे उन ब्राह्मन वैष्णव ने श्रीगुसांईजी सों वि- नती कीनी, जो - महाराज ! मैं कछु सेवा की रीति भांति जा- नत नाहीं। तब श्रीगुसांईजी ने कही,जो-तोकों वह वैष्णव
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