, ३६० टोमी बावन यापन की वार्ता रहेगो तव हाइंगे। तब कायस्थ ने कही, जो-हमारे मृवा को पहर दिन ते कूच होड़गी। सा आज पहर दिन त पहिले दम्मन होइ तो पचीस हजार रुपैया श्रीनाथजी के आगे भंट करों। और दस हजार रुपैया तुम को देगी। तत्र चांपाभाई ने आय के श्रीगुसांईजी को चरनारविंद दावि के जगाग । नव श्रीगु- सांईजी ने भंडारी तें कही, जो - या सम में आयो ? तत्र भंडारी ने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो- महागज ! दीवान आयो है, सो ऐरों कहे हैं. जो-नित्य त घरी दोइ पहिले उत्था- पन होंइ तो पचीस हजार रुपैया भेंट करों। तब श्रीगुसांईजी नेकही, जो- हमारे पास आयो हतो । पहर दिन तं कृत्र होइगो। तव भंडारी ने कही, जो- पहर दिन ते पहिले उत्थापन होइ तो आछौ। तव श्रीगुसांईजी ने कही, जो-आछौ । तव भंडा- री ने आप के कायस्थ तें कही, जो - श्रीगुसांईजीने आज्ञा करी है । सो आज वेगि उत्थापन करेंगे। पाछे श्रीगुसांईजी तो नित्य तें दोइ घरी अवेरे जागे । और यहां तो सूवा के तो कूच के नगारे वजे । सो सूवा ने मनुष्यन तें कही, जो-दीवान को बुलाय ल्यावो । सो हलकारा गए । सो गोपालपुर आय दीवान कों बुलाय के ले गए। पाछे इन कों तो कूच होंइ गयो। तव दीवान को तो श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन को वोहोत ताप भयो । सो मारग मे देह छोरी । और इहां श्रीगुसांईजी स्नान करि के ऊपर मंदिर में पधारे। पाछे संखनाद करवाए। उत्थापन भोग के दरसन भए । तब श्रीगुसांईजी ने भंडारी तें कही, जो-बुलाओ, वह कहां है कायस्थ ? तव भंडारी ने कही, जो - महाराज ! उनको तो कूच होइ गयो । और आपने तो
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