एक कृणवी पटेल २७ सब वैष्णवन ते जेश्रीकृष्ण करि के चलतो । सो अपने घर आय के श्रीठाकुरजीकी सेवा करतो। सो ऐसें करत वोहोत दिन वीते । तव एक एकादसी आई। तव वह कुनवी पटेल अपने श्रीठाकुरजी की सेवा सौ पोहोचि कै रात्रि को चल्यो । सो अंधियारे में मार्ग भूल गयो। और मेह वरसत हतो। तव आगें चलि कै एक खलाव आयो । सो वा तलाव के ऊपर रूख बोहोत है । सो एक रूख पैं तें एक प्रेत उतरि के याके मार्ग में आड़ो आय ठाढ़ो भयो। तव या कुनवी वैष्णव ने कह्यो. जो-तू कौन है ? जो-या मार्ग में ठाढ़ो है ? तव वह वोल्यो, जो-हौं प्रेत हो । बोहोत दिनान को भूखो हं । ताते मैं तोकों खाऊंगो । तव वा कुनवी वैष्णव ने कही, जो-आज एकादसी के जागरन में जात हों और सवारे याही मार्ग आउंगो। तव तू मोकों सुखेन वाइयो। तव वा प्रेत ने या पटेल सों कह्यो, जो-तेरो विस्वास नाहीं। जो तु फेरि या मारग काहे को आवेगो? तु मेरे काल के मुख में काहे को आवेगो? तव वा कुनवी ने कही. जो-यह मेरो वचन है। जो-मबारे आयकै तोकों पुकारूंगो । तव तृ मोकों सुखेन खाइयो । तव वा ब्रह्म राक्षस ने कह्यो. जो-भल, विस्वास है। परि त सवारे वेगो आईयो । तव वा प्रेत ने बचन ले के जान दीनो। तव वह पटेल वैष्णव वा गाम में वार्ता-कीर्तन-मंडली में गयो। तब सावधानी सों कथा मुनी । और मन हुलास सों कीर्तन किये । और वा पटेल कुनवी वेणव ने अपने मनमें विचार कियो. जो-सवारें तो वह रानस खायगो। जो-मैं उहां त निश्चय करि के आयो है । सो यातें भगवद् नाम जितनो
पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।