३५० दोमी वाचन विष्णन की वार्ता राखि उन ही को आश्रय करें । तात सत्र कागज सिन्द्र हो । सो वह स्त्री श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपापात्र भगवदीय हती। तातें इन की वार्ता कहां तांई कहिा ? वाता ॥१४॥ . अव श्रोगुमाईजी के मेग्रफ उगाय प्रगाह नागर मान गजमा म त, तिनकी घार्ता को भाघ फाम है भावप्रकाग-ये गजम भक्त है । लीला में उनको नाम का है। ये 'कमला' ते प्रगटी हैं. नातं उनके भावरूप है। याना मग-२ सो एक समै श्रीगुसांईजी गुजरात को पधारे हुते । तब उद्धव त्रवाडी को नाम दियो हतो। पाठे ये श्रीगुसांईजी के पास रह । सो बड़े कृपापात्र भगवढीय भये । जिनके ऊपर श्रीगुसांईजी सदा प्रसन्न रहते । सो कितनेक दिन पाछे उद्धव त्रवाडी ने श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो - महाराज! जिनके ऊपर आप की कृपा होइ तिन कों अन्य संबंध कैसें होई ? तब श्रीगुसांईजी ने कह्यो, जो-जिनके हृदय में स्वरूप दृढ़ भयो हे तिन को अन्य संबंध उपजे नाहीं। यह सुनि के उद्धव त्रवाडी बोहोत प्रसन्न भए । पाछे उद्धव त्रवाडी ने श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो- महाराज! आपकी कृपा जीव कों बताओ तव जानि परे । और आपको स्वरूप हृदयारूढ होइ तव अन्याश्रय करे नाहीं। तव जानिए, जो-जीव को श्रीआचार्यजी महाप्रभुन को स्वरूप हृदयारूढ भयो । मार्ग सगरो स्फुरयो । तव श्रीगुसांईजी आप श्रीमुख तें आज्ञा किये, जो - त्रवाडी । है तो ऐसेई । बहोरि एक समे श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी पंधारे । तव घार्ता प्रसंग-२
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