३४८ दोमा धावन वैष्णवन की वार्ता द्रव्य की लालच तें उन के अर्पन करत हैं। ता पाछे हाकिम सों पूछन्यो, और कह्यो, जो - तनेह द्रव्य की लालच मां न्याव किया है ? तव हाकिम ने कह्यो. जो - माहव ! माकों याक कपट की कछ समुझि परी नाहीं । तब श्रीगुमाईजी ने कह्यो. जो - तैं पाछे त याके सुमर को काहेकों बुलायो ? ते पहिले ही याके सुसर संबंधीन को बुलाय पृछ्यो क्यों नाहीं ? जो- यह कहा कहत हैं ? सो सत्ता त उन्मत होड के गेमोई त्याव करत है ? तब हाकिम ने कह्यो, जो - हो चुक्यो तो सही । तव श्रीगुसांईजी ने कह्यो, जो-तुम तो चुके परि इन को नो सर्वस्व गयो ? और या स्त्री के प्रान जाते। ऐमो करम कियो। पछि पात्साह ने हुकम कियो, जो - यह सवन को बरच करो। तव श्रीगुसांईजी ने कह्यो, जो - ऐसे मति करो। हां कहीं मो करो। पाठे श्रीगुसांईजी ने कह्यो, जो - वा डोकरी को तो कछ द्रव्य को दंड करो। और या वेस्या को घर सब लूटि लेहु । और या हाकिम को हटाई के और हाकिम करा और सब द्रव्य लटि लेहु । जासों और कोऊ ऐसो न्याव करे नाहीं । और वा तुरक की नाक काटि के सव द्रव्य छिन लेहु । और याको छोरि देहु । ता पाछे जैसे श्रीगुसांईजी ने कह्यो वेमे ही पात्साहने कियो । पछि पात्साह श्रीगुसांईजी को भेट द्रव्य वोहोत देन लाग्यो । परि कछ लीनो नाहीं । ता पाछे पात्साह ने घनी प्रनपति करि कै कह्यो, जो- हों आप कौ चाकर हौं। जो-कार्य मो लायक जैसो होइ तसो आप कृपा करिके कहोगे! और आप मो पर कृपाराखोगे। मेरी राज-काज की लाज आप राखी है,सो हों आप कौ दास हों। ता पाठे श्रीगुसांईजी उहां
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