पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३४८

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एक साहुकार के वेटा की वह, मरत की ३४७ सुसर को बुलाय कै श्रीगुसांईजी ने उन सों करो. जो - यह कोऊ अलौकिक जीव है। याकों धीरज धन है । या समान धीरज कोऊ नाहीं । तातें तुम याकों समुझाय के घर लै के जाउ । और यह कहे सो तुम करियो । ता पाछे वा स्त्री ने कह्यो. जो - महाराज ! हम तो कोऊ वैष्णव नाहीं । और अव तो हों इन के संग नाहीं जाउं । ता पाछे वह सव श्री- गुसांईजी सों विनती करि कै सरनि आए । तव श्रीगुसांईजी ने कृपा करि कै वाकों आत्मनिवेदन करवायो। और वाके घर कों, सव को सरनि लिए। तब ये वैष्णव भए । ता पाछे ये सव श्रीगुसांईजी पास उहांही रहे । पाठे वा हाकिम वा डोकरी सब आए । तव पृथ्वीपति ने श्रीगुसांईजी कों बुलाये । तव श्रीगुसांईजी पधारे । पाठे सव सभा जुरी । तव राजा ने श्री- गुसांईजी सों कह्यो, जो-अव इन को कहा पूछनो, कहा करनो? सो आपकी आज्ञा प्रमान करिए । तव श्रीगुसांईजो ने कह्यो, जो - वा डोकरी सों सव वात पूछो । तव वा डोकरी सों पूछयो, जो-सब साँची कहि। तव वा डोकरी ने जो वात भई सो सब कही। और कह्यो, जो-हों तो भोरी, सो मैं तो दगा ना जान्यो। सो ये तुरक मोसों कहे ता प्रमान नाम या स्त्री सों पूछिपूछि के यासों कहती। और याके देह के लक्षन चिन्ह हू मैं बताये। ऐसे कीनो । अब आपकी ईच्छा में आवे सो मोकों करिये। ता पाठे वा वेस्या कों पूछ्यो, तव वाहू ने जो प्रकार करयो सो सब कह्यो । जैसें इन सिखायो और इन नाम सिखाए । तेसे ही मैं कह्यो। और कीनी, जो-हमारो तो यह उद्यम है । जो - द्रव्य देहि ताकौ कहों। जो - कछु कहि सों करना । ऐसी सुंदर देह