पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३४५

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३४४ दोमो बारन वैष्णान की वार्ता कौन उपाय कीने ? तव वा तुरक ने कह्यो, जो- मेरे बाही सम मन में दुःख लग्यो । जो-देखो स्त्री जन मोको थपेड मारे तो मेरो जीवनो वृथा है। ताते मैं ऐलो उपाय कियो । तव वा बीने कह्यो, जो-तोसों इतने नाम किन कहे ? और कैसे लिखे ? और वह ऐसो लिख्यो और यह सब कसे भयो ? मां बात कहिये । तव वा तुरक ने कह्या, जा-वह अमृकी दांकरी तु- म्हारे घर आवति हती सा वासो मिलि के नाम सब तामों पृछि आवती। सो मोसा कह सा हो लिखत जातो। वाकों हो मया कहि वोल्यो। और वाकों द्रव्य ह दीनो। पाठे जो प्रकार वा तुरक ने कीने सो सब बात विस्तार के कही, जो - ऐसें एक बेरया को छोरी ल्यायो, ऐसें वाकों सिखायो । सो सब बात कही। ता पाछे सव विगत कहि रह्यो तब वह साहुकार वैष्णव रखवारो खांस्यो । तव वा स्त्री ने कह्यो, जो - तुम सुनते होंहि तो सुधि राखियो । तव वा साहुकार ने कह्यो, जो - मैं सब सुन्यो है और सव सुधि है । तातें तुम अव काह वात की चिंता मति करियो । तेरे सन्मुख प्रभुजी ने देख्यो । ऐसें कह्यो । सो सुनत ही वा तुरक को तो प्रान उड़ि गयो । और मन में कह्यो, जो - यह ऐसो कहा भयो ? ता पाछे थोरीसी देर में प्रातःकाल भयो । ता पाछे श्रीगुसांईजी वेगि ही दंतधावन करि कै पधारे। तव राजद्वार आये । तव पृथ्वीपति ने वोहोत ही सन्मान कियो। ता पाछे वे दोऊ पीजरा खोलि के मँगवाये । पाछे जा वैष्णव के द्वार पींजरा वांधे हते वाकों बुलायो । ता पाछे श्रीगुसांईजी ने मनुष्य पठवाये । वा स्त्री के पिता-सुसर को बुलाये । ता पाछे प्रधान राजा टोडरमल तथा वीरवल तथा