एक साहुकार के वेटा की बहु. मूरत की ३४३ दोऊ पीजरा को मारि कै पाछे एकांत में वा साहुकार वैष्णव कों बुलाय के पाछे पृथ्वीपति को देखाइ कह्यो, जो-जागत रहियो। और जो- वात होंइ सो सब हम सों सवारे कहियो । ता पानें दोऊ पीजरा साहूकार के द्वारे लै जाँइ के धरे । ता पाछे संध्या रात्रि भई और सब लोग तो सोये । तव वा स्त्रीने वा तुरक कों पुकार यो, कह्यो, जो-तुम काहे कों सोय रहे हो ? जागो तो कछ वात करें। तव वा तुरक ने जान्यो, जो-आज मेरो बड़ो भाग्य है, जो-मोसों यह स्त्री वोली । ता पाउँ वा स्त्रीने कयो, जो- अब तो पृथ्वीपति ने हो तुम को दीनी । परि एक वात हों तुम तें पूछत हों, जो - तुम लिख्यो कौन भांति सों करवायो है, सो वात मोसों कहिये । जो-हों जानों, जो - ऐसो तुम्हारो पराक्रम है, ऐसें तुम चतुर हो। और तो कोऊ नाही. जो सुने। तव भगवद् इच्छा सों वाको मन भ्रमित भयो । तातें पाप गोप्य रह्यो नाहीं । ता पाछे वा तुरक ने कह्यो, जो - यह बात तोसों हों कहोंगो पाछे । तव वा स्त्रीने करो, जो-अवही काहे नाहीं कहो? यहां तो तुम हम दोऊ हैं। और तीसरो तो कोऊ नाहीं। तातें जो हों तुम्हारो सामर्थ्य जानों तो सुखेन तुम्हारे साथ चलें। ता पाछे वा तुरक ने कह्यो, जो - वे दिना की तुम को सुधि है? जो-मोकों तू थपेड मारि के घर में भाजि गई। तेरे घर के पाछे उहां तुम वार सुखावति हती तव मेरी दृष्टि परी । सो हों घोड़ा कों ऐंड दै के भीतर आइ के उतरयो । उतरि के हाथ पकर यो तव वा स्त्रीकों सुधि आई। तब कह्यो, जो-हां! अव तो सुधि आई। परि हों थपेड याही ते मारी. जो-याको याद रहे । और तुम करोगे भले । तब और कहे. जो - ता पाठे
पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३४४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।