३४२ टोगो बाचन यण्णवन की वार्ता गुसांईजी श्रीमुख तें आज्ञा किये. जो - तुम वठो। तब पृथ्वी- पति वेट्यो। पाठे श्रीगुसांईजी पृथ्वीपति मां कयो, जो-याको न्याव या प्रकार करो । जो-कोऊ एक मनुष्य मों कहो, जो- तुरक सों तुम छिपि जाँइ के किवाड़ मारि के आज हमारी आज्ञा तें भीतर जागत वैठियो। परि वह तुरक जाने नाही, जो-इहां कोऊ जागत है। और रात्रि में यह दोऊन की बातें होंहि सो सब सुनि के याद राखियो । सब बात गजद्वार में म- वारे आइ कहियो। ए काम हमारो जानि के करनो, ऐसो वासों कहो। सो आज की दिन लौकिक प्रतीति के लिये हम कहें सो करियो। तव पृथ्वीपति ने एक साहकार भलो मनुष्य हो ताकों बुलाइ के सब बात समझाय कह्यो । सो वह वैष्णव हतो। ता पाठे श्रीगुसांईजी ने वा स्त्रीकों एकांत बुलाय के बामों कह्यो, जो-तुम्हारे दोड़ पींजरा न्यारे या वैष्णव के द्वारे बांधंगे। सो जव सव कोउ सोवे तव तुम वा तुरक सों हँसि के बोलियो। इतने वह घना मन में प्रसन्न होइगा। ता पाछे तुम कहियो, जो- सुनोजू ! अव तो पृथ्वीपति ने तुम को दीनी । सो तो हो होई चुकी । परि तुम यह लिख्यो केसें कीनो। सो वात मासों कही चहिए। जो - हों तुम्हारे पुरुषार्थ जानों तो तुम्हारे संग प्रस- नता सों चलोंगी। ऐसी वात करि कै वा पास सव कहवाइयो। और वह सब मेरी ईच्छा तें कहेगो। वाकौ पाप पूरो होइ गयो है, सो फूटेगो । सो यह सुनि के राजद्वार में कहियो। सो इतने ही प्रतीत होइगी । सो तू तो चतुर है । पाछे श्रीगुसांईजी वा स्त्रीको लै कै राजद्वार गए । ता पाळे वे पीजरा दोइ मँगाये । वामें दोऊ कों बैठारे। ता पाछे तारौ
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