एक कुणबी पटेल २५ खंडन ब्राह्मन भलो वैष्णव भयो। सो सव वैष्णवन का मिलि के चलतो। और जो वैष्णव अपने घर आवे ताको बोहोत ही दीनता सों अपने घर राखतो। सो सब वैष्णवन की वह खंडन ब्राह्मन वोहोत ही मर्यादा राखे । पाछे वह खंडन ब्राह्मन अपनी बुद्धि तें कीर्तन करतो । सो कीर्तन मार्ग की रीति सों श्री- भागवत के अनुसार करतो। और कोई वैष्णव वड़ाई करे तव कहें, जो- यह प्रताप तुम्हारोई है । तुम्हारी कृपा तें वह कार्य सिद्ध भयो है । और वैष्णवन को सव काम करतो । वैष्णवन सों दीनता राखतो। सो वह खंडन सनोढ़िया ब्राह्मन श्रीगुसांईजी को ऐसो परम कृपापात्र भगवदीय हतो। तातें इनकी वार्ता को पार नाही, सो कहां तांई कहिए। वार्ता ॥ ८९॥ - अब श्रीगुसांईजी की सेषक एक कुनवी पटेल, गुजरात में एक छोटे ग्वेरा में रहतो तिनकी पार्ताको भाव कहत है। भावप्रकाश-ये तामस भक्त है । लीला में इन को नाम 'सत्यव्रता' है। ये 'गुनचूडा' ते प्रगटी है । तातें उन के भावरूप हैं । वार्ता प्रसग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी आप गुजरात पधारे हते। तब वा कुनवी पटेल कों श्रीगुसांईजी के दरसन भए । तव वा कुनवी ने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो-महाराज! मोकों सरनि लीजिए । तव आप श्रीमुख ते आजा किये, जो-तृ स्नान करि आऊ । तब वह कुनवी पटेल स्नान करि आयो। पाठे श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी. जो-महाराज ! में स्नान करि आयो हुँ । तात मो पर कृपा करि के नाम दीजिए। तब ४
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