एक साहुकार के वेटा की बहू, सूरत की ३३३ जानि के सरनि आए तातें बेगि उनकी सिद्धि भई । या प्रकार श्रीगुसांईजी कहे। सो वे दोऊ स्त्रीपुरुष श्रीगुसांईजी के परम कृपापात्र भग- वदीय हते । तातें इनकी वार्ता को पार नाहीं, सो कहां ताई कहिए। वार्ता ॥ १४८॥ अव श्रीगुसांईजी के सेवक एक साहुकार, ताकौ बेटा और ताकी बहू सूरत में रहते, तिनको वार्ता कौ भाव कहत हैं- भावप्रकाश-सो बहु तामस भक्त हैं । लीला में इन को नाम 'नबोढ़ा है। इन को स्वरूप बोहोत सुंदर हैं । वे परम चतुर हैं । ये श्रीचंद्रावलीजी की अंतरंग सखी हैं । ये 'कमला' तें प्रगटी हैं । तातें इन के भावरूप हैं । धार्ता प्रसंग-१ सो वह साहुकार सूरत में रहत हतो। सो ताके बेटा की स्त्री को रूप वोहोत हतो । सुंदर हती, नवजोवन हती। सो एक समै स्त्री ऋतु-समै न्हाई के अपने घर के पाछे वाड़ा में केस सुकावति हती। सो ता समै एक म्लेच्छ राजा को चाकर सो घोड़ा ऊपर वैठिकै तापी को जल प्यायवे को जातो। सो घोड़ा ऊपर ते वाकी दृष्टि वा स्त्री पर परी । तव वाने घोड़ा को एड़ मारी । सो घोड़ा वाड़ा उल्लंधि कै वा स्त्री के समीप जाँई के ठाढ़ो भयो। पाठे वाने घोड़ातें उतरि कै वाकौ हाथ पकरयो। तव वह स्त्री चक्रत होइ रही। परि वह स्त्री चतुर बोहोत ही हती। तातें मन में विचारी, जो-अव इहां तो कोऊ नाही, और यह वात रीत विरुद्ध भई । परि अव तो पुकारोंगी तो सव कोई आइ के जुरेंगे। तो लोक में यह वात प्रसिद्ध होगी। लोक तो दुराचारी हैं। और मेरे मन की तो प्रभु जानत हैं। ऐसे विचारि के वा तुरक सों वह वोली,जो-तुम मेरो हाथ छोड़ो, तुम कहोगे
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