स्त्री-पुरुष, आगरे के ३३१ मोहनजी सानुभावता जनावन लागे। चहिए सो मांगि लेते। या प्रकार उन स्त्री-पुरुष को हरिवंसजी की कृपा तें और. श्री- गुसांईजी की कृपा तें अनुभव होंन लाग्यो । घार्ता प्रसग-२ पाचें एक दिन ब्राह्मनी के मन में यह संदेह आयो, जो: सालिग्राम तें श्रीमदनमोहनजी कैसे भए ? और देवी सों श्रीवा- मिनीजी कैमें भए ? तव वह स्त्रीने अपने पुरुष सों पूछ्यो। तब ब्राह्मनने अपनी, स्त्री सों कह्यो, जो - चाचा हरिवंसजी परम भगवदीय हैं । तिन सों पूछेगे । तव संदेह दूरि होइगो । पाठे रात्रि को संतदासजी के घर स्त्रीपुरुष दोऊ जनें आये । सो भगवद्वार्ता चाचाजी और संतदासजी करि चुके तव उह ब्रा- मनने चाचाजी हरिवंसजी सों कही, जो - महाराज ! हमारे घर प्रथम सालिग्राम और देवी की मूरति हती। सो श्रीगुसांईजी जव पंचामृत स्नान कराये तव सालिग्राम तें श्रीमदनमोहनजी भए। और देवी ते श्रीस्वामिनीजी होंइ गए। सो कारन कहा ? तव चाचा हरिवंसजी उन ब्राह्मन सों समुझाय के कह्यो, जो- सालिग्रामजी अक्षरब्रह्मको स्वरूप है। अक्षर के भीतर लोक- वेद प्रसिद्ध पुरुषोत्तम हैं । लोकवेद प्रसिद्ध पुरुषोत्तम के भीतर लोक वेदातीत पुष्टि पूरन पुरुषोत्तम हैं । सो ऐसे पुरुषोत्तम के संबंधी श्रीगुसांईजी हैं। तातें इन के श्रीहस्त परस तें रसात्मक पुरुपोत्तम को प्रादुर्भाव भयो । तातें श्रीमदनमोहनजी भये । और देवी सो सक्ति हैं। सो सव लक्ष्मी को अंस हैं। सोऊ श्रीगुसांईजी के श्रीहस्त कमल के परसतें देवी ते श्रीस्वामि- नीजी को प्रादुर्भाव भयो । तातें ऐसी निधि श्रीगुसांईजी की
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