पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३३१

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३३० दोगी वाचन वणवन की वार्ता हम को श्रीगुसांईजी के चरनारविंद प्राप्त भये हैं। और हम अबही कछ पुष्टिमार्ग की रीति जानत नाहीं । तात हमारे घर कृपा करि कै चलो। खासा-मर्यादा मेवको सब मेवा की प्रकार रीतिमांति सब कृपा करि के वतावोगे, तग हम करें । नातं दोइ चार दिन हमारे घर मे कृपा करि के रहो। पाठं मंतदासजी के घर जइयो। या भांति सों दोऊ जनन की दीनता देखि के चाचाजी वोहोत प्रसन्न भए । पछि हखिंमजी उन ब्राह्मन के घर गए । सो जात ही सगरो घर पुताये । मृतिका के पात्र सव काढ़ि डारे । सो सव नये लेक सब जल भराय के खामा किये । कांसी पीतर के पात्र पलटाय के नये लिये । कोर मृतिका के पात्र में कोरो अन्न धरे । पाछे सखड़ी, अनसम्बड़ी चूल्ही चौको मंदिर को ठिकानो किय । तहां श्रीठाकुरजी को पध- राए। ता दिन हरिवंसजी रसोई किये । सामग्री सिद्ध भए पाळे भोग श्रीमदनमोहनजी को आये । पाठे समै भए भोग सराय राजभोग आर्ति करि के पाछे अनोसर कराय, पाछे हरिवंमजी के संग चार वैष्णव हते और ये दोऊ स्त्री-पुरुष सहित हरिवंस- जी महाप्रसाद लिये । पाछे सिंघासन खंड पाट खिलोना पिछ- वाई वागा वस्त्र सव सिद्ध कराये । पाठे उत्थापन तें लेके सेन ताई पहुंचे । या प्रकार पांच दिन लों हरिवंसजी ने सेवा को प्रकार स्त्री पुरुष को वताये । पाछे हरिवंसजी संतदासजी के घर आए । तव संतदासजी वोहोत प्रसन्न भए । पाछे रात्रि कों संतदासजी के घर भगवदवार्ता नित्य होती सो दोऊ स्त्री-पुरुप सेन मदनमोहनजी को कराय के अनोसर करिकै संतदासजी के घर नित्यनेम करि कै आवते । सो उन पुरुप को श्रीमदन-