पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३२९

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३२६ दोगो बानन घेणवन की वार्ता ब्राह्मन हो, अपनी पूजा और पोथी क्यों भंट करत हों ? तब स्त्री-पुरुपने कही, जो - महाराज ! हम इनकों मर्वस्त्र जानत हते सो हम अव समर्पन किये । स्त्री को सर्वस्त्र द्रव्य हतो मो भेंट कियो । अव हमकों आप के चरन कमल को आश्रय है। और काहू वात में मन नाहीं । तातें अब आपु जो - बतावोगे सो करेंगे । जा प्रकार हमको पुष्टिमार्ग के फल की प्राप्ति होई। अन्याश्रय न हॉइ । सो उपाय आप कहोगे । सो हम करेंगे । हम अज्ञानी हैं कछु समझत नाहीं । तातं हमारो भलो हाइगो मो आप करोगे । यह सुनि के उह ब्राह्मन के ऊपर श्रीगुसांईजी वोहोत प्रसन्न भये । तब पंचामृत मंगाय के सालिग्राम कों प्रथम न्हवाये । सो श्रीमदनमोहनजी को स्वरूप भयो। पाठे देवी को पंचामृत सी न्हवाये । सो श्रीस्वामीनीजी की स्वरूप भयो, हस्तमें कमल लिये । तब श्रीगुसांईजी उह ब्राह्मन और ब्राह्मनी सों कहे, जो - यह स्वरूप पुष्टिमागीय को सर्वस्व है। इनकी सेवा पुष्टिमार्ग की रीति सों तुम करियो । पाठे श्रीगु- सांईजी 'सर्वोत्तम' ग्रंथ अपनो कियो सो दियो । और आज्ञा किये, जो याके पाठ तें वेदपुरान श्रीभागवत, गीता, सास्त्र सब कौ पाठ भयो जानिया । यह दोऊ पदार्थ पुष्टिमार्ग के फलरूप जानि करियो । ता करि कै तुम को सदा पुष्टिमार्ग को अनु- भव होइगो। तव अत्यंत प्रेम सोंश्रीमदनमोहनजी श्रीस्वामिनीजी सहित पधराए। पाळे श्रीगुसांईजी भोजन करन कों पधारे । पाछे भोजन करि जूंठनि की पातरि इन दोऊ स्त्री-पुरुप कों धरी । सो दोऊ जनेंन महाप्रसाद लिये । पाछे श्रीगुसांईजी अपनी बैठक में गादी तकियां ऊपर विराजे । तव दोऊ स्त्री,