स्त्री-पुरुष, आगरे के ३२५ देवी नाहीं आई तातें उपवास भयो । और दूसरे दिन घर तें यहां आपके चरनारविंद के सम्मुख चले सो उपवास भयो है । तव श्रीगुसांईजी कहे, जो - पहिले दिन कौ उपवास भयो सो तो देवी के लिये भयो । सो तो ब्रह्मसंबंध में काम न आवे । वा उपवास ते तो महाप्रसाद ले के ब्रह्मसंबंध ले सो आछो । और काल्हि जो उपवास भयो सो ठीक है । तातें राजभोग सरे पाछे ब्रह्मसंबंध दोऊन कों करावेंगे। तव दोऊ जनें प्रसन्न होंई कै श्रीगुसांईजी कों दंडवत् किये । पाछे श्रीगुसांईजी मंदिर में पधारे । श्रीनवनीतप्रियजी कों जगाय के पाछे मंगलभोग धरें। ता पाछे समै भये भोग सराइ कै मंगला आर्ति किये । सो सब वैष्णवन दरसन किये । वा ब्राह्मन ब्राह्मनी में हू दरसन किये। पाठे श्रीगुसांईजी सिंगार करि कै पालने झुलाए । पाठे राज- भोग धरे । समै भये तव भोग सराय के पाछे ब्राह्मन ब्राह्मनीन कों मंदिर में बुलाये । श्रीगुसांईजी दोऊन के हस्त में तुलसी- दल दे कै ब्रह्मसंबंध कराये । पाठें तुलसीदल ले प्रभुन के चर- नारविंद आगे समर्पन किये । ताही समै ब्राह्मन ब्राह्मनीन कों महारस को दान भयो । सो लीला सहित श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन भये । और श्रीगुसांईजी के निज स्वरूप को दरसन भयो । पाछे अनोसर भयो। तव दोऊ स्त्रीपुरुष श्रीगुसांईजी की बैठक में आय वैठे । पाछे श्रीगुसांईजी अपनी बैठक में पधारे। गादी तकिया ऊपर विराजे । तव स्त्री अपनो गहनो और जो कछू रोकडि हती सो सव श्रीगुसांईजी की भेंट कियो । और पुरुष ने सालिग्राम देवी की मूरति, भागवत की पोथी और दुर्गापाठ की पोथी भेंट करी । तव श्रीगुसांईजी कहे, जो - तुम
पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३२८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।