२४ दोसौ पावन चणवन की वार्ता कै श्रीगुसांईजी श्रीगिरिराज तें नीचे पधारे । तब वह खंडन ब्राह्मन हू दरसन करि कै सोय रह्यो। सो ऐसें केतेक दिन ताई श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन किये । पाछे श्रीगुसांईजी आप श्रीगोकुल पधारे । सो साथ सव वैष्णव आए । तव वह खंडन ब्राह्मन हू साथ आयो। सो श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन किये । और महाप्रसाद लिये । पाछ वा खंडन ब्राह्मन ने श्री- गुसांईजी सों विनती कीनी, जो-महाराजाधिराज ! आज्ञा होइ तो मैं ब्रजयात्रा करि आउं । तब श्रीगुसांइजी आप खंडन ब्राह्मन सों कहे, जो ब्रजयात्रा तो अवस्य करी चहिए। तब वह खंडन ब्राह्मन विदा होंइ कै चल्यो। सो कितनेक दिन में संपूरन ब्रजयात्रा करि कै श्रीगोकुल आयो। सो श्रीगुसांईजी श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन कियो। पाछे केतेक दिन श्री- गोकुल में और रह्यो। ता पाछे श्रीगुसांईजी सों विदा होइ कै वह खंडन ब्राह्मन सिंहनंद अपने घर आयो । ता पाछे उन वैष्णवन सों मिलि भेट्यो । पाछे सव समाचार श्रीगुसांईजी के कहे । पाछे मार खायवे की बात श्रीगुसांईजी सों नाहीं कही हती सो हू वात उन वैष्णवन सों कही। तव उन वैष्णवन में एक मुखिया हतो। सो उहां पाग उतारि दोऊ हाथ जोरि के पाछे वा खंडन ब्राह्मन के पावन परयो । और कह्यो, जो-धन्य है । साँची बात कहि दीनी । तुरत ही अपराध को दंड हु भयो । सो यह दैवी जीवन को लक्षन है। सो- उनके निकट ही श्रीप्रभुजी बिराजत है । और आसुरी जीवन को तो लक्षन यह है, जो-ज्यों ज्यों अधर्म करें त्यों त्यों भलो होई । सो याही तें यह तो ऐसी बात है । ता पाछे
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