२९२ दोनों घावन वैष्णवन की वार्ता . . तब श्रीगुसांईजी दोउन को आना किये, जो - नुम दोऊ भगवन्सेवा कगे। नत्र मोहनदास कहे, जो - महागज ! श्रीठाकुरजी पधगड दीजिए | तब श्रीगुगर्टिजी उन के माथे लालजी को म्वरूप पधगड दिए । पाछे सेवा की सब गति कृपा करि बताए । मानसी को हु प्रकार सब कन्यो । पाछे आप तो श्रीद्वारिकाजी पधारे ता पाछे मोहनदास व्रजभक्तन की भावनापूर्वक भगवद् सेवा कग्न लागे। सो सब लीला हृदय में म्फूर्त भई । श्रीठाकुरजी मानुभावना जनावन लागे । पाठे एक दिन मोहनदास हन्दिाय सो मिले । तब हरिदाय को मोहन- दामने कयो, जो - तुम श्रीगुसांईजी के सेवक होउ नो आठौं। मैं हु श्रीगुसांईजी को सेवक भयो हूं। श्रीगुसांईजी माक्षान् कन्हया है। तब हरिराम कहे, जो - मोकों तुम सेवक करावो । में श्रीगुसांईजी को सेवक होउंगो । तब मोहनदास ने कही, जो - श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी पधार है मा कक दिन में पाठे दहां पधारेंगे । तत्र मैं तुम सों कहूंगो । ता पाठे केतेक दिन में श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी मों फिरे। मो मोहनदास के गाम में डेग किये । तब मोहनदास ने हरिदाम को ग्यवरि पठाई । जो - श्रीगुसांईजी इहां पधारे हैं । तातें तुम इहां बेगि अटयो । और मोहनदास ने श्रीगुसांईजी को अपने घर पधराए । सो दिन चारि लो राखे । पाछे हग्दिाम आए। तब मोहनदास श्रीगुसांईजी मो विनती किये, जो - महाराज ! ये हरिदास दैवी जीव हैं। सो आप के सरनि आयो है । तब श्रीगुसांईजी कृपा करि के हरिदास को नाम निवेदन कराए । पाछे हरिदास ने श्रीगुसांईजी सो विनती कीनी. जो - महाराज ! कृपा करि कै मेरे गाम-घर पधारिए। स्त्री-पुत्र सब को सरनि लीजिए। तब श्रीगु- साईजी मोहनदास कों संग ले हरिदास के गाम पधारे । सो हरिदास के घर विराजे । पाछे हरिदास की स्त्री और हरिदास के पुत्र को नाम निवेदन कराइ सरनि लिये। पाछे श्रीगुसांईजी सो हरिदास विनती किये, जो - महाराज ! अब भगवद् सेवा पधराइ दीजिए, तो कछु आपकी कानि तें टहल करें । तब श्रीगुसांईजी हरिदास कों एक लालजी को स्वरूप पधराय दिए । पाछे आज्ञा किये, जो- मोहनदास कों सेवा की सब रीति पूछि लीजो । और मोहनदास को संग करियो । तातें तोकों भगवद्भाव स्फुरायमान होइगो। ता पाछे श्रीगुसांईजी आप उहां तें श्रीगोकुल पधारे । और हरिदास के घर मोहनदास दस-पांच दिन रहे । सेवा की सब रीति बताए । ता पाछे मोहनदास हरिदास सों विदा व्है अपने घर आए । पाछे महिना में दस पांच दिन हरिदास मोहनदास के पास जाई। भगवद्वार्ता सुने। सो मोहन- दास के संग सों हरिदास मारग को सब सिद्धांत जानन लागे ।
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