२८० दोमो धावन वैष्णवन की वार्ता TIT यल्यान ब्रजराज लडेतो गाइये, वल मोहन जाको नाम हो । खेलत फाग सुहावनो, रंग भींज रह्यो सब गाम हो ॥ १ ताल पखावज वाजहिं हो, डफ सहनाई भरि हो। श्रवन मुनत सव ब्रजवधु हो, झंडन आई घेरि हो ॥२ इतहिं गोप सब राज ही हो, उत सव गोकुल नारि हो। अति मीठी मन भामती हो, देति परस्पर गारि हो ॥३ चोवा चंदन छिरक रही हो, डारत अबीर गुलाल हो। मुदित परस्पर खेल ही हो, हो हो हो बोलत ग्वाल हो ॥४ घेरि सखी मोहन गहि आने, प्यारी पकरे हाथ हो । गोपी भेख वनाइ के, रचि बेनी गूंथी माथ हो ॥ ५ वहुरि मतो करि मुंदरी हो, हलधर पकरे जाय हो । नव कुंकुम मुख मांडि के हो, आए हैं आंखि अंजाय हो ॥६ पीतांवर मुख मंदि के हो, निरखि हँसे नंदलाल हो । दाऊजी आजु भले वने, कूके दे सव ग्वाल हो ॥७ सिमिट सकल व्रजसुंदरी हो, ब्रजपति पकरे आन हो । भरत सकल व्रजसुंदरी हो, नेक न राखत कान हो ॥८ तव नंदरानी वीच कियो हो, मेवा दियो है मँगाय हो । पट भूखन पहिराय के हो, 'हपिकेस' वलि जाय हो ।। ९ यह धमार हृपिकेस ने गाई । सो सुनि के श्रीगुसांईजी वोहोत ही प्रसन्न भए । सो श्रीगुसांईजी की कृपा तें हृषि- केस को यह अनुभव भयो । पाछे डोल उत्सव तांई श्रीजीद्वार रहे । पाछे श्रीगुसांईजी गोकुल पधारे । तब दृषिकेस हू श्री- गोकुल आए । पाछे श्रीगुसांईजी सों आज्ञा मांगी, जो-मैं
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