हपिकेस क्षत्री, आगरे के २७९ करियो। तव चांपा संकर ने उह दोइसैं रुपैया की सामग्री ल्याइ राखी। 7 और हृपिकेस के मन में यह आई, जो - अव वसंत पंचमी आई है तासों डोल तांई श्रीगुसांईजी के पास रहों । तव एक दिन हपिकेस ने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो- महाराज ! डोल उत्सव तांई मेरो मन आप के पास रहिवे को है । सो सेवा विनु दिना वीते नाहीं । तासों आप कछु सेवा चतावो तो रहूं। तव श्रीगुसांईजी कहे, जो - चाहो तो फूल- घर में रहो । चाहो भंडार में कछु सेवा करो। तव हपिकेस विनती करी, जो - महाराज! मैं आप के संग श्रीजीद्वार जायो चाहुं । तातें अपने पास की कछु सेवा वतावो । तव श्रीगुसांईजी कहे, जो - खवासी करो । तव हपिकेस श्रीगुसां- ईजी की खवासी में रहे । सो वोहोत प्रीति सों सेवा करते। सो श्रीगुसांईजी हपिकेस के ऊपर वोहोत प्रसन्न रहते । सो श्रीगुसांईजी वसंतपंचमी के दिन इहां श्रीनवनीत- प्रियजी कों खिलाय के पाछे श्रीजीद्वार पधारे । सो उत्थापन की झारी भरे। तब हपिकेस संग गये। सो श्रीनाथजीद्वार श्रीगुसांईजी होरीदांडा रोपनी तहां किये । पा, पून्यो के दिन उत्थापन समै श्रीगोकुल पधारे । सो आठ दिन ताई होरी के, फेर श्रीनवनीतप्रियजी कों खिलाए । तव हृपिकेस श्रीगोकुल रहे । पाछे आठे के दिन फागुन वदि ८ को श्रीगुसांईजी श्रीजोद्वार पधारे। तव उत्थापन की झारी भरे । सो डोल ताई श्रीगुसांईजी श्रीजीद्वार रहे । सो एक दिन हपिकर ने यह धमार गाई. कल्यान राग में । सो धमारि-
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