पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२७४

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मेहा धीमर, गोपालपुर को २६३ सुनि के मेहा मन में जान्यो, जो-यह दैवी जीव नाहीं है । तातें श्रीगुसांईजी की सरनि नाहीं आवेगो । पाछे मेहा अकेलो भगवद्सेवा करें । सो एक दिन चारि वैष्णव मथुरा तें चले । श्रीगोकुल कों, श्रीगुसांईजी के दरसन कों। तव दिन थोरो रह्यो । तव वैष्णवन विचार करयो, जो - मथुरा के घाट आज उतरि रहे । प्रातःकाल गोकुल पहोंचेंगे। सो पार मथुरा के घाट चारों जनें उतरे। तव एक वैष्णव ने कह्यो, जो-चलो गोपालपुर में मेहा श्रीगुसांईजी को भलो वैष्णव है। ताके घर में रात्रि कों रहेंगे। भगवद्वार्ता कछु सुनेंगे। यह सुनि कै सवन के मन में यह बात आई। सो चारों जनें चले। सो घरी दोई रात्रि गई ता समै मेहा के घर आय पहोंचे । ता समै मेहा के इहां सेनभोग धरयो हतो। तव मेहा ने वैष्णवन कों वोहोत सन्मान करि अत्यंत प्रीति सों उतारो दियो। पाठे सेनभोग सराय के पाठे चारों वैष्णवन कों दरसन कराय भली भांति सों प्रसन्न किये । सो चारों वैष्णवन के मन में यह आई, जो-हमकों यह स्वरूप पधरावें तो हम सेवा करें। पाछ मेहा ने अनोसर करि कै वैष्णव के पास आय पूछ्यो, जो - महाप्रसाद लेऊ । दूध की सामग्री हैं । और अनसखड़ी हू हैं । सो तुम्हारो मन होइ सो लेऊ । तब वैष्णव ने कही, जो- हम महाप्रसाद लेके चले हैं। और तुम्हारे इहां दूध की सामग्री हैं, सो लहिंगे । तव मेहा दूध के पेड़ा, खोवा, मलाई, दूध. यह महाप्रसाद ल्याय दियो । घर में गाँइ भैसि वोहोत हुती। तातें दृध बोहोत होतो। सो चारों वैष्णव ने महाप्रसाद लियो। पाठे मेहा महाप्रसाद लेके वैष्णवन के पास आयो । सो भगवद् वार्ता करन लागे।