पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२६४

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मेहा धीमर, गोपालपुर की २५१ समै श्रीगुसांईजी सगरे वैष्णवन सहित रावल पधारे । सो वा दिन श्रीगोकुल पधारिये को मुहूर्त आछो नाहीं हतो। तासों श्रीगुसांईजी आज्ञा किये, जो - आज सुहूर्त आछौ नाहीं है। तासों रावल के पास 'गोपालपुर ' गाम है, तहां डेरा करो। प्रातःकाल श्रीगोकुल चलेंगे। तब सगरे वैष्णव सेवक टहलुवा भारकस ले के गोपालपुर डेरा किये । वहां डेरा में श्रीगुसांईजी पधारे। पाछे आप वागा उतारि के श्रीयमुनाजी के किनारे संध्यावंदन करन पधारे। तव वैष्णव दसपांच संग गये। सो घाट पै पहोंचे । तव श्रीगुसांईजी देखें तो एक मलाह जाल लिये मछली पकरत है। तव वैष्णव वह मलाह के पास जाँइ कै कह्यो, जो-तू इहां तें मछली मति पकरे । श्रीगुसांईजी यहां पधारे हैं। तातें त उठि जा। तव मेहा धीमर ने कही, जो-आज प्रातःकाल तें कछू खायो नाहीं है । सो मैं जाल कैसे निकासों ? तव वैष्णव ने एक रुपैया मेहाधीमर को दियो। और कह्यो, जो-वेगि तू जाल निकारि। तव धीमर ने तत्काल जाल निकार लियो । तव वैष्णव ने मेहा सों कह्यो, जो-तू डेरा तें नेक दुरि बैठ्यो रहियो । तव तोकों खाइवे कों देइंगे। अब तू इहां तें उठि जा। तब वह मेहा धीमर अपनो जाल लेकै वेगि ही उठि के अपने घर गयो। पाठे श्रीगुसांईजी श्रीयमुनाजी के तीर वैठि के संध्यावंदन किये । पाठे अपने डेरा में वैष्णव सहित पधारे। सो पाक करि भोग धरे । पाठें आप आरोगे। तब सगरे वैष्णव हते तिनको जूठनि की पातरि श्रीगुसांईजी घरन लागे। तब वैष्णव श्रीगुसांई- जी सों विनती करी, जो - महाराज! एक पातरि और धरनी