एक विरक्त, गोकुल को २३९ वैठारी । सो सगरो गाम उह देवी को माने। और पटेल वे दोऊ भाई कवह उह देवी के मंदिर में न गए । कव हू दरसन न किये । ता पाछे श्रीठाकुरजी सानुभावता जनावन लागे । सो सगरे समाचार एक वैष्णव ने श्रीगुसांईजी के आगे कहे। सो सुनि कै श्रीगुसांईजी उन पटेलन ऊपर वोहोत प्रसन्न भए। भावप्रकाश-या वार्ता में वैष्णव को स्वरूप जताए, जो-वैष्णव सर्वोपरि है । देवी देवता सब उन सों डरपत हैं। उन की आजा में रहत । तातें वैष्णव कों अन्याश्रय सर्वथा न करनो । और अपने द्रव्य को भगवद्अतिरिक्त काम में न लगावनो । काहेते, जो-उह प्रभुन को द्रव्य है । सो प्रभुन के कार्य में खच होंई । अन्य देवी-देवतान के अर्थ खर्च करे तो बहिर्मुख होई । ऐसें दोऊ भाई पटेल अनन्य टेक के भगवदीय हते । जिन की वड़ाई श्रीमुख ते श्रीगुसांईजी करते। तासों उन की वार्ता कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥१३३॥ अव श्रीगुसांईजी को सेवक, एक चिरक्त, सो श्रीगोकुल में रहती, तिनकी वार्ताको भाव कहत है- भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त है। लीला में इनको नाम 'विरहात्मिका' है। ये 'ब्रजमंगला' ते प्रगटी हैं। तातें उनके भावरूप हैं। घार्ता प्रसंग-१ सो विरक्त श्रीगुसांईजी कौ सेवक हतो। सो चुकटी मांगि के निर्वाह करतो । सो मानसी सेवा वोहोत स्नेह सों करतो । श्रीआचार्यजी, श्रीगुसांईजी के ग्रन्य बोहोत पाठ करत हतो । पुष्टिमार्ग में रूचि आछी हती। और श्रीगुसांईजी की सेवकिनी एक क्षत्रानी हती। ताके पास द्रव्य बोहोत हुतो। तासों उह विरक्त को स्नेह हतो। सो वह क्षत्रानी सों मिलि के भगवद्वार्ता भगवदस्मरन करे। ता
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