२३८ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता दंड उनके ऊपर परयो है । सो अव ही तो ऊन दिये नाहीं। प्रातःकाल मनुष्य पठाय के मंगाय लेंगे। तब राजा ने कामदार सों कहो, जो - उन पटेलन के ऊपर को दंड माफ करो। अब मनुष्य उनके मति पठाईयो । तब कामदार कही, अव उनके घर ऊपर को दंड छोरे । अव मनुष्य न पठावेंगे । पाठे राजा सों कामदार विदा मांगि के अपने घर गयो। पाछे प्रातःकाल राजा उठि के उह अंधियारे कृप के पास गयो। तहां उन मनुष्य को लगाय के देवी को उह कूप में तें काढ़ि के आपने घर ले गयो। एक ब्राह्मन सों पूजा करावन लाग्यो । और राजा आप चलि कै उन पटेल के घर आय के पटेल सों कह्यो, जो- देवी की उठाय के कुआँ में डारि आये सो देवी मोकों मारन आई। तासों आज तें अब तुम्हारे ऊपर दंड कबहू न करेंगे । और तुम कबहू देवी को दुःख मति दीजो। तव पटेल ने कह्यो, जो- राजा! देवी सों हम सों कछु वेर तो नाहीं हैं । हम तो काहू नाहीं देत है । यह तो हम इतनो याके लिये कियो है, जो - हमारे कछु द्रव्य नाही हतो। तव राजाने रुपैया ४००) उन पटेलन के आगे धरयो। कह्यो, जो-यह तुम लेऊ । तुम बड़े वैष्णव हो। तुम को देवी दंड नाहीं दे सकत तो मैं कैसे दंड देहुंगो। यह दंड अनजाने भयो तातें मेरो अपराध क्षमा करो। तव पटेल ने कह्यो, जो-हम काहू को द्रव्य लेत नाहीं। खेती करत हैं। तामें आछी भांति घर कौ खर्च चलत है।सो तुम यह द्रव्य ले कैकाहू ब्राह्मन को पून्य करि दीजो। देवी के मंदिर में लगाइयो। तब राजा पटेल की बोहोत बड़ाई करि के अपने घर आयो। पाठे राजाने तलाव पै देवी को मंदिर समरायो। तहां देवी कों को दुःख
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