पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२५२

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दो भाई पटेल, गुजरात के २३७ वनवाइवे की कही है सो गाम में तें कछ द्रव्य आयो हे और कछ आवेगो। और कछु मैं अपने घर ते लगाउंगो। तुम्हारो मंदिर सिद्ध कराय के पूजा तुम्हारी चलाउंगो । और तुम कों कहा दुःख है ? तव देवी ने राजा सों कही, मंदिर तो जव वनावेगो तव दीसेगी । परि मैं तो अंधियारे कृप में परी हों। यह सुनि के राजा मन में वड़ो आश्चर्य भयो । तव राजाने पूछी, जो- ऐसो जगत में कौन है, जो-तुम्हारो अपराध करि सके ! सो तुम अंधियारे कुआँ में कैसें गिरी हो? सो वात तो कहो। कोई मेरे गाममें अपराध कियो होय तो ताकों मैं दंड करों। तव देवी राजा सों कहे, जो-तेरे गाम के दोई भाई पटेल हैं सो तैनें उनके ऊपर दंड क्यों कियो ? वे तो वैष्णव है। श्रीगुसांईजी के सेवक हैं। सो उनके ऊपर दंड तू कियो तातें उन पटेलन ने हम को कुआँ में डारी है । सो यह तेरो दोप भयो। तातें मैं तोकों खाउंगी। तब राजा ने कहो, जो - मैंने तो विना जाने उन ऊपर दंड करयो है । मैं उनको स्वरूप जान्यो नाहीं । अव मैं काल्हि उनके ऊपर को दंड माफ करूंगो। तुम मोकों काहे को खात हो ? यह अपराध तो मोसों विना जाने कौ परयो है । सो छिमा करो। तब वह देवी ने कही, जो काल्हि उह पटेल के ऊपर को दंड माफ करियो । और उन दोउ भाई पटेल सों डरपत रहियो । उन को कछु दुःख देडगो तो तेरो भलो न होइगो। या प्रकार राजा को सिक्षा करि के देवी गई । तव राजाने वाही समै अपने कामदार को बुलाय कै पूछ्यो, जो- फलाने पटेल दोऊ भाई हैं तिनके ऊपर कितनो दंड परयो है ? तब कामदार ने कही, जो-दोइ रुपेयान की