दो भाई पटेल, गुजरात के २३५ रीति बताए। तब दोऊ भाई आज्ञा मांगिश्रोठाकुरजी कों पधराय अपने घर आये। तहां गाम के वैष्णवन की मंडली होई । तामें ये नित्य भगवद्वार्ता सुनिवे को जाने। घार्ता प्रसंग-१ सो दोई भाई खेती करते । तहां वह गाम के राजा ने एक वड़ो तलाव खुदायो । ताके भीतर तें एक देवी को स्वरूप निकस्यो । सो एक सिला हाथ चारि की तामें देवी कौ स्वरूप । सो वह देवी ने राजा को स्वप्न में कह्यो, जो - एक बड़ो देवालय करि कै और मेरी पूजा चलावो । तव राजा ने कही, आछो । पा, प्रातःकाल उठि के राजा ने विचार कियो, जो - यह देवालय वनायवे कौ काम है। सो यामें द्रव्य वोहोत लगेगो। सो कछु गाम सों लीजिए । कछु मैं लगाय के मंदिर सँवराऊं । तव राजा ने कामदार को बुलाय कै कह्यो, जो - गाम सों कछु द्रव्य लेहु । सो देवी को मंदिर वनावेंगे। तब कामदार ने सगरे गाम में यथासक्ति दंड कियो सव सों। सो कोई पै एक रुपैया कोई पर अरघ रुपैया, बड़े बड़े सेठ पर पचास पचास रुपैया । जैसी आसामी तेसो दंड कियो । सो देवी के मंदिर को नाम सुनि कै बोहोत प्रसन्न होइ के दियो । सो दोई भाई पटेल श्री- गुसांईजी के सेवक हे । उन पर दोई रुपैया दंड कियो । सो राजा के मनुष्य रुपैया मांगन आये, जो-देवी को मंदिर बनेगो। तातें दोइ रुपैया तुम देउ । सवन ने दिये हैं। यह सुनि के दोऊ भाई आपुस में वतराए । तव एक भाई ने कह्यो, जो राजा के वसिये हैं तातें राजा कहे सो करनो। दोई रुपेया देऊ। तव दूसरे भाई ने कह्यो, जो - अपने घर में सगरो द्रव्य श्री- गुसांईजी को है । सो कैसें दियो जाँय ? देवी के मंदिर के लिये ? भावप्रकाश--यामें यह जतायो. जो चैष्णव को अपनो द्रव्य अन्य कार्य में
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