२२८ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता हती । सो तामें एक घर उनहू को हतो. सो तहां जांइ रहे। तहां एक लाड़ वनिया हतो। सो एक और मुखिया को चाकर हतो । सो वह वनिया नित्य मुरारीदास के घर आवतो । ताके साथ वह मुखिया कहवाय पठावतो । जो एक बार मुरारीदास माला उतारि मेरे पास आवे तो मुरारीदास कहे सो मैं करूं । यह वा मुखिया के समाचार वा वनिया ने आइ के मुरारीदास सों कहे । तव मुरारीदास एक दिन मुनि के श्रीठाकुरजी सों पहोंचि के अपने मार्ग को सर्व चिन्ह प्रकासि के वाके घर गए। सो मुरारीदास को देखि के वह जरि गयो। परि वह कर्मिष्ठ हतो। तासों पूजा की साज मंगायो । सो वह पूजा करिवे कों तत्पर भयो। तब मुरारोदास को तामस चढयो । सो मुरारीदास को मुखिया छ्वे लग्यो तव मुरारीदास ने वासों कही, जो-तू मेरे सरीर को हाथ लगावेगो तो मोकों सचैल स्नान करनो पडेगो। तव वा ब्राह्मन अति क्रोधवंत भयो । सो श्राप देव लग्यो । सो वानें कह्यो, जो- मुरारीदास ! तेरे जल कौ देवेवारो मति रहियो । तेरो सत्यानास जैयो। और ये तेरो घर ही उजार हूजो । तव मुरारीदास कह्यो, जो - श्रीगु- सांईजी साक्षात् पूरन पुरुषोत्तम हैं, और मेरो धर्म सांचो है, तो तेरो श्राप मोकों कहा करेगो ? और यह तेरो डेरा है। सो दूजो कोई घर के द्वार ठाडो होइगो ताही को घर जात ही देउंगो । और मैं तेरी ब्रह्मपुरी छोरि जाउंगो। यह कहि कै मुरारीदास अपने घर आए । सो घर आय द्वारे ही ठाढ़े रहि अपनी स्त्री को बुलाइ कै मुरारीदास कहे, जो-तू श्रीठाकुरजी कों संपुट में पधराय के संपुट लै कै सगरे कुटुंब सहित घर में
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