२२४ दोसौ घावन वैष्णवन की वार्ता में बड़े प्रवीन हते । पाछे इन को व्याह भयो । सो स्त्री सुपात्र मिलि, पतिव्रता । इन के दो वेटा भये। घार्ता प्रमग-१ सो एक समय श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे हते । तव चाचा हरिवंसजी प्रभुन के साथ हते । सो श्रीगुसांईजी कों पधरावन को खंभाइच के वैष्णव राजनगर साम्हे आए। तब वैष्णवन को वोहोत हठ आग्रह जानि के श्रीगुसांईजी खंभाइच पधारे । तहां श्रीगुसांईजी सहजपाल दोसी के घर उतरे। सो वा ठौर एक ब्राह्मन मुरारी आचार्य छहों सास्त्र को ज्ञानी-वक्ता हतो। वाकी कर्ममार्ग विपे नेष्टा वोहोत हती । सो वह ब्राह्मन श्रीगुसांईजी के दरसन कों तहां सहजपाल दोसी के घर आयो। पाछे वह ब्राह्मन कछु सास्त्र की वार्ता श्रीगुसांईजी सों करि उठि गयो । तब चाचाजी ने श्रीगुसांईजी सों कही, जो - ऐसो ब्राह्मन वैष्णव होय तो भलो। यह वात चाचाजी ने प्रभुन के आगें तीन बार कही । परि श्रीगुसांईजी या वात कौ प्रति- उत्तर न दिए। भावप्रकाश-सो यातें, जो - वह देवी है । सो आपही तँ सरन आवेगो। ता पाछे श्रीगुसांईजी श्रीद्वारिकाजी होंइ कै श्रीमथुराजी में पधारे। तहां तें अड़ेल आए। पाछे केतेक दिन कों वह ब्राह्मन खंभाइच ते कासी जाइवे को भयो। सो मथुरा व्है अड़ेल आयो, संग में । सो वाकों चाचाजी ने देख्यो । सो उत्थापन समय श्रीगुसांईजी गादी तकिया पर विराजत हते । इतने ही गुजरात खंभाइच को साथ अड़ेल श्रीगुसांईजी के दरसन को आयो। तब चाचाजीने बिनती करी, जो-महाराज! खंभाइच को ब्राह्मन आयो है । सो चाचाजी के बचन सुनि के
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