पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२३८

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मधुसूदनदास क्षत्री, पश्चिम के २१९ कृपा करि के नाम सुनायो । ता पाछे निवेदन करायो । तव मधुसूदनदास ने एक सुंदर घोड़ा भेंट कियो। ता पाछे श्रीगुसां- ईजी आप गादी तकियान के ऊपर विराजे । तव मधुसूदनदास पंखा करन लागे। ता समै मधुसूदनदास ने श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो- महाराज ! अब हम को कहा आज्ञा है ? तव श्रीगुसांईजी ने कृपा करि कै मधुसूदनदास के माथे सेवा पधराई। और सेवा की रीति सिखाई । ता पाछे श्रीगुसांईजी कितनेक दिन लों उहां विराजे। सो वा मधुसूदनदास को सिंगार सिखाये । और रात्रि कों नित्य प्रसंग-भगवद्वार्ता सुनावते । सो एक दिन श्रीआचार्यजी महाप्रभुन की सेवा को माहात्म्य कह्यो। जो-जीव कैसेउ अघ की खान होंई परि श्रीआचार्यजी महाप्रभुन की. सरन आवे तो तत्काल सव दोप दूरि होंइ जाई। और श्रीआचार्यजी, पुष्टिमार्गको फल है ताकौ दान करे। ऐसे श्रीआचार्यजी महाप्रभु परम दयाल हैं। तातें उन के चरनकमल को विस्वास राखनो । तातें पुष्टिमार्ग के फल की प्राप्ति होई। सोश्रीगुसांईजी ने मधुसूदनदास को कह्यो। सो सुनि कै मधुसूदन- दास वोहोत प्रसन्न भए । ता पाछे श्रीगुसांईजी ने उहां सों विजय कियो। सो श्रीगोकुल पधारे। तव मधुसूदनदास श्रीगुसां- ईजी के साथ आए । सो श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन किये। ता पाठे श्रीगुसांईजी श्रीनवनीतप्रियजी के राजभोग-आरति करि के ता पाछे अनोसर करके अपनी बैठक में पधारे । तब श्रीगुसांईजी ने मधुसूदनदास सों पूछी, जो - मधुसूदनदास ! दरसन किये ? तब मधुसूदनदास ने आय के श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी,जो-महाराज!आप की कृपा तें दरसन किये। ता