एक वैष्णव, गुजरात को २१५ रजी वड़े दयाल है सव की रक्षा करत हैं । ये वचन श्रीगुसां- ईजी के सुनि के वह वैष्णव वोहोत प्रसन्न भयो। ता पाछे श्रीगुसांईजी ने वा वैष्णव को एक लालजी को स्वरूप सेवा करिव को पधराय दियो । पाछे सेवा की सव रीति भांति समुझाइ करो, जो - इन की सेवा तू नीकी भांति करियो । ता पाऊँ श्रीगुसांईजी आप तो श्रीगोकुल पधारे । और वह वैष्णव तो श्रीगुसांईजी की आज्ञा प्रमान श्रीठाकुरजी की सेवा करन लाग्यो। सो तन्मय होड़ के श्रीठाकुरजी की सेवा करतो। ऐसें करत वोहोत दिन भए तव श्रीठाकुरजी सानुभावता जता- नव लागे । जो - चहिए सो मांगि लेते । |-या वार्ता में यह जतायो, जो-वैष्णव को प्रभुन पर दृढ भरोंसो राखनो । प्रभु सर्व करन समर्थ हैं । तातें लौकिक वैदिक की चिंता सवथा न करनी। और भगवत्सेवा तन्मय होंई के करनी । सो यह वैष्णव श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय हो। ताते इन की वार्ता कहां तांई कहिए । वार्ता ॥१२६॥ भावप्रकाश- अव श्रीगुसाईजी को सेवक दामोदर झा घढनगरा नागर ब्रामन, वडनगर में रहतो, तिनकी यार्ता को भाव कहत है- भावप्रकाश--ये सात्विक भक्त हैं । लीला में इन को नाम 'इंद्रप्रभा' है। ये 'नीला' तें प्रगटी हैं। तातें उनके भावरूप हैं। सो ये गुजगत में वडनगर गाम है. तहां एक नागर ब्राह्मन के प्रगटे । सो वह ब्राह्मन सैवी हतो । सो दामोदरदास आ बरस आठ के भए । तर ते ये विद्या पढन लागे । सो विद्या बोहोत पढे । बड़े पडित भए । पार्छ बग्स वाइम के भए तब इनके माता-पिता मरे । सो वह अकेले ही रहे । मो वा गाममें सेवा बोहोत हुते । और वैष्णव थोरे हुते । वार्ता प्रसंग-१ सो दामोदर झा वैष्णवन को टीलआ कहतो। और कहतो.
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