पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१९२

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एक मलेच्छ, महावन को म्लेच्छ नित्य सांझ को श्रीगोकुल आवतो। सो श्रीगुसांईजी के दरसन करतो । पाठें रात्रि को श्रीठकुरानी घाट उपर नित्य कारो कम्मर लेकै सोवतो। सो एक दिन श्रीगुसांईजी को जलघरा छुवाइ गयो हतो। तव श्रीगुसांईजी श्रीयमुनाजी न्हान कों अंधेरे में पधारे हते। भावप्रकाश-काहेते, जो - सास्त्र में सीतल जल सों घर में न्हानो दोप कह्यो है। सो श्रीगुसांईजी श्रीयमुनाजी न्हाइवे कों पधारे । तव अंधेरे में वा मलेच्छ के माथे में श्रीगुसांईजी कौ चरन लाग्यो । तव श्रीगुसांईजी तीन वेर अष्टाक्षर मंत्र कहे । पाछे श्रीगुसांईजी आप न्हाय श्रीयमुनाजी में, ता पाछे घर पधारे। पाजें वह म्लेच्छ वैष्णवन पास आइ वैठे, और वैष्णवन सों कहे, जो-मैं हूं सेवक हों । पाछे सब वैष्णव यह वात श्रीगुसांईजी सों पूछे । तव श्रीगुसांईजी उन वैष्णवन सों प्रसन्न होइ कै सव वात कहे । पाछे कह्यो, जो-नेक दूरि वैठन दीजो । सो वह म्लेच्छ नित्य द्वार पर आइ कै दरसन करि जाँइ । और श्रीगुसांईजी श्रीनाथजीद्वार तथा परदेस जहां पधारे तहां वह म्लेच्छ हू श्री- गुसांईजी के संगही जाँई। परंतु श्रीगुसांईजी के दरसन किये विना वह म्लेच्छ जलपान न करे । ऐसी कृपा वा ऊपर भई । पाठे श्रीगुसांईजी आप अंतर्धान लीला दिखाए। तब वह म्लेच्छ हू श्रीगुसांईजी कौ विरह करि कै आप हू देह छोरि दियो। भावप्रकाश-या धार्ता को अभिप्राय यह है, जो - प्रभुन के (श्रीगुसां- ईजी के) वचन पर दृढ विस्वास राखें ताको कार्य तत्काल सिद्ध होई । सो वह म्लेच्छ श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय हतो। तातें इनको वार्ता कहां तांड कहिए। वार्ता ॥११॥