ताराचंदभाई, गुजरात के १७१ सो वे जनार्दनदास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय हते। तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिये । वार्ता ॥११६॥ अब श्रीगुप्ताईनी के सेवक ताराचंदभाई, गुजरात में रहते, तिनकी वार्ता को भाव कहत हैं- भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं । लीला में इन कौ नाम 'वचन-चातुरी' है । सो इन के वचन में चतुराई चोहोत हैं। ये 'सोरसेनी' तें प्रगटी हैं, तातें उनके भावरूप हैं। ये गुजरात में एक चनिया के जनमे । सो ता समै गाम में महामारी आई। सो यह लरिका दिन दस को भयो तव इन के माता-पिता दोऊ मरे । ता पाठे इन के एक काका हतो । सो वाने या लरिका को अपनी पास राख्यो । पाल्यो पोष्यो वड़ो दियो । सो वह काका वैष्णव हत्तो। वाके घर में नित्य भगवद् मंडली होई । तामें यह लरिका नित्य भगवद् वार्ता सुने । तब याके मन में आई, जो-मैं हू श्रीगोकुल जाँई श्रीगुसांईजी को सेवक होंउ तो आछौ । सो एसें करत कछक दिन में गाम में तें एक संग वैष्णव को श्रीगोकुल को चल्यो । सो वा संग में ताराचंद ह चले। वार्ता प्रसंग-१ सो ताराचंद भाई श्रीगुसांईजी के दरसन को श्रीगो- कुल आए । सो श्रीगुसांईजी आप के दरसन करि कै विनती करी, जो-महाराजाधिराज ! मोकों नाम दीजिए । तव श्री- गुसांईजी आप आज्ञा किये, जो-जाऊ, श्रीयमुनाजी में स्नान करि कै आउ । तव ताराचंद भाई श्रीयमुनाजी में स्नान करिवे कों गए । सो स्नान करि कै आए । तव श्रीगुसांइजी आप सों विनती करी,जो-महाराजाधिराज ! मोको अव सरनि लीजिए। तव श्रीगुसांईजी आपु वा ताराचंद भाई को नाम सुनाए । ता पाठे श्रीगुसांईजी आपु श्रीनवनीतप्रियजी को राजभोग को समय हतो। सो श्रीनवनीतप्रियजी को राजभोग सरायो। पाठे श्री-
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