१६८ दोसौ वावन वैष्णवन की वार्ता के पास वैष्णवन के घर हते । सो जनार्दनदास वरस पांच के भए तब तें वैष्णवन के घर जाइवे लगे । सो वैष्णव उन को दैवी जीव जानि महाप्रसाद देते। कहतें, जो - तू दैवी जीव है । तेरे पर वेगि कृपा होइगी । ऐसें करत जनार्दनदास वरस अठारह के भए । तब इन को विवाह भयो। सो स्त्री दैवी आई। ता पार्छ केतेक दिन कों जनार्दनदास के माता-पिता मरे। तव जनार्दनदास वैष्णवन की मंडली में जाइवे लगे । भगवद् वार्ता-चर्चा सुनते । घार्ता प्रसंग-१ सो एक समै चार-पांच वैष्णव आगरे ते श्रीगोकुल कों श्रीगुसांईजी के दरसन कों चले । सो उन के संग जनार्दनदास चोपडा क्षत्री आगरे तें श्रीगोकुल को श्रीगुसांईजी आपु के दरसन को आए । तव जनार्दनदास को श्रीगुसांईजी आप के दरसन भए । सो साक्षात कोटि कंदर्पलावन्य श्रीपूरन पुरुषो- तम के दरसन भए । तव जनार्दनदास ने श्रीगुसांईजी आप सों बिनती कीनी, जो- महाराजाधिराज ! मोकों सरनि लीजिए । तव श्रीगुसांईजी आपु आज्ञा किये, हां हां, तोकों नाम सुनाइ सरनि लेइगें । जाऊ, श्रीयमुनाजी में स्नान करि आऊ । तब जनार्दनदास ने साष्टांग दंडवत् किये। ता पानें श्रीयमुनाजी स्नान करिवे को गए। पाछे स्नान करि कै श्री- गुसांईजी पास आइ आपु सों बिनती किये, जो - महाराजा- धिराज.! मोको नाम सुनाइए । तब श्रीगुसांईजी आपु जना- देनदास को नाम सुनाए । और श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन करवाये । ता पाछे श्रीगुसांईजी आपु श्रीनवनीतप्रियजी कों अनोसर करि के अपनी बैठक में पधारे । गादी तकियान के ऊपर विराजें। तब सब वैष्णवन के संग जनार्दनदासने साष्टांग दंडवत् किये। और कहे, जो-मोकों तो श्रीमहाराज की चरनार-
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