१४६ दोसौ वावन वैष्णवन की वार्ता तव श्रीगुसांईजी कहे, जो - अब ही नाहीं। श्रीगोकुल अइयो, तहां तुम कों निवेदन करावेंगे। याप्रसग-१ सो वे दोऊ मा बेटा द्रव्यपात्र हते । सो वे दोऊ मा वेटा बिचारि करि कै ब्रज को चले । सो श्रीगोकुल आए। सो श्रीनवनीतप्रियजी के राजभोग के दरसन किये। पाछे बैठक में आय के श्रीगुसांईजी के दरसन किये। तव श्रीगुसांईजी को भेट करी । तव श्रीगुसांईजीने पूछी, जो-तुम कव आए ? तव.इन वैष्णवन ने कही, जो-राजकी कृपा त श्रीनवनीतप्रियजी के राजभोग के दरसन आय किये। तव श्रीगुसांईजी ने आज्ञा करी, जो-महाप्रसाद इहांई लीजो। पाछे इन वैष्णव को आप श्रीहस्त सों जूंठिनि धरी। पाठे आप बैठक में विराजे, वीरा आरोगे । पाळे वे वैष्णव महाप्रसाद ले आए। तब श्रीगुसां- ईजी आप प्रसादी वीरा उन को दे के आप पोढ़े। पाछै वे वैष्णव तो अपने डेरा आये । पाछे सेन समै दरसन को आए। सो दरसन किये । ता पाछे श्रीगुसांईजी अपनी बैठक में कथा. कहन लागे । तब इन वैष्णवन ने हू सुनी । पाछे जव कथा कहि चुके तब उन ब्राह्मन वैष्णव बिनती करी, जो-राज ! कृपा करि कै ब्रह्मसंबंध कराइये । तब श्रीगुसांईजी ने आज्ञा करी, जो-काल्हि ब्रत करियो। परसों तुम को ब्रह्मसंबंध करावेंगे। तब उन ब्राह्मन (मा-बेटा) वैष्णवन व्रत कियो। ता पाछे दूसरे दिन सवेरे श्रींयमुनाजी में स्नान करि कै अपरस में श्रीगुसांईजी के आगे हाथ जोरि कै ठाढ़े. भए । तब श्री- गुसांईजी ने श्रीनवनीतप्रियजी के सन्निधान. उन दोउन मा बेटान कों ब्रह्मसंबंध करवायो। पाछे थोरेसे दिन रहि कै श्री-
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