दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता प्रियजी को अनौसर करवाय के आप अपनी बैठक में पधारे । तब ये दोऊ भाई पटेल दंडवत् करि के श्रीगुसांईजी को भेंट धरी । तब आप आज्ञा करी, जो-दोऊ जने महाप्रसाद यहांई लीजो। पाठे आप भोजन कों पधारे। सो भोजन करि महा- प्रसाद की पातरि दोऊ भाईन कों धरी। आप वेठक में विराजे । पाठे वे दोऊ भाई महाप्रसाद ले के श्रीगोकुल में कोटरी ले के रहे । सो नित्य भगवद् वार्ता मंडली में जाते । पाछे एक दिन श्रीगुसांईजी श्रीनाथजीद्वार पधारे। तव वे दोऊ भाई पटेल श्रीगुसांईजी के संग गए!। सो श्रीगोवर्द्धन- नाथजी के दरसन करि कै मनोरथ किये। पाछे दोऊ भाई विचार किये, जो-व्रजयात्रा करिए तो आछो । ता पाछे श्रीगुसांईजी की आज्ञा ले वे दोऊ भाई ब्रजयात्रा कों गए। सो ब्रजयात्रा करि के पाछे श्रीगोकुल आइ कै श्रीगुसांईजी के दरसन किये । तब श्रीगुसांईजी ने पूछी, जो- ब्रजयात्रा करि आए ? तव इन कही, जो - राज की कृपा तें करि आए। पाछे सातों स्वपरून कौ तथा श्रीगुसांईजी को मनोरथ कियो। पाछे केतेक दिन श्रीगोकुल में रहे । तब एक दिन श्रीगुसांईजी ने पूछी, जो- अब तुम्हारो कहा मनोरथ है ? तब उन दोऊ भाई पटेलन ने हाथ जोरि कै श्रीगुसांईजी सों बिनती कीनी, जो - राजकी आज्ञा होय तो तरहटी में रहें। और श्रीगोवर्द्धननाथजी की जो बने सो सेवा करें। तब श्रीगुसांईजी प्रसन्न होइ के आज्ञा दिये, जो- आछौ है। पाछे वे दोऊ भाई तरहटी में आय रहे। सो नित्यप्रति उठि स्नान करि कै श्रीगोवर्द्धननाथजी के मंदिर में जाते। सो राजभोग तांई जो सेवा होंई सो करते। राजभोग
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